बुधवार, 2 नवंबर 2011

दीवाली या खुदा का नूर

आज ऐसा ही कुछ एहसास हो रहा है मुझे भी दीपावली के इस शुभ अवसर पर
खुदा भी आसमान से जब जमीन पर देखता होगा
तो मेरे सेहर को देख कुछ ऐसा ही कहे गा

देखा जो दूर से आज शर अपना
लगा खुदा खुद उतर आया है जमीन पर आज
हर सू उस का ही नूर छाया है आज
दुल्हन सी सजी है रात अमावास की आज
मांग सितारून से सजी है उस की आज
आँचल में कृपा बरस रही लखमी की आज
ओन्थून पे मुस्कान दिल में तम्नाएय हज़ार
हर देहलीज पर ज्योति आमंत्रण की जली है आज
थाल भरे हैं खुशियूं से
लड्डू फूट रहे आँगन आँगन आज
मीठा सा हो रहा है यह मन भी आज
रूह भी तो देखोरोषण है कितनी आज
तोहफे पयार से मिल रहे हैं गले आज
रौशनी मिठाई खुशीआं पठाखे मिलन तोफे और ढेर सारा पयार
लाया है दिवाली का त्योहार आज
आओ मिल कर ख़ुशी मनाएं गले मिलें खूब पटाखे बजाएं
लो आई दिवाली आज लो आई दिवाली आज

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