आचल के तुजे में ले के चलूँ
ख्वाबून के पंखून पे हो के सवार
च चले क्षतिज के उस पार
महल ऐसा बनाए जिसके न हूँ दरू  दिवार
जहां हो बस में तुम और प्यार ही प्यार
यह कैसा अजुनूं हे सवार
इस से मन गया हार
आ चल के चले उस पार
जहां फूल ही फूल हे नहीं कोई खार
दे दूं तुझ को बाहूं के हार
बेबस हो के  तू  दिल  जाए अपना हार
आ जा के हो के ख्वाबो के पंखून पे सवार
चले हम दोनों करे बस प्यार ही प्यार
 
 
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