मेरा सपना
अम्बर से हर बूँद बटोरूं
प्रेम - ओस की प्यासी मैं
रुन झुन चलूं गगन मंडल में
बादल की करूं सवारी मैं !!
कतरा कतरा पंखुडियों का
भर अंजुली में इतराऊं
चन्दन सी काया बन जाउं
श्रृद्धा - गीत निरंतर गाऊं !!
प्रेम जगत के पथिक संग ले
प्रेम पंथ पर जल बरसाऊं
मैं मीरा बन नाचूं गाऊं
मै नदिया बन बहती जाऊं !!
मै बनूं वृक्ष और छाया दे दूं
थके हुए झुलसे हृदयों को
बनूं मरहम और जख्म मिटाऊं
गोद बनूं और रोग मिटाऊं !!
भूखे को भोजन बन जाऊं
बनूं सहारा मैं निर्बल का
सिद्धार्थ हृदय बन पीडा हर लूं
फिर मीरा बन नाचूं गाऊं !!
बुधवार, 30 सितंबर 2009
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
हां तुम कुछ ऐसा ही करना
हां तुम कुछ ऐसा ही करना
हां कुछ ऐसा ही करना
अपने नैनों से
अपने कानों से
अपने स्पर्श से
मेरे अस्तित्व में
समाहित हो कर
मेरे भीतर बहकर . रहकर ..
अपनी दृष्टि दे कर मुझको
अपनी शक्ति देकर मुझको
बस जाओ यूं कि ...
हां कुछ ऐसा ही करना
होंठ मेरे हों गीत तुम्हारे
स्वर मेरे हों कंठ तुम्हारे
हर सिहरन, ज्यों तुम छूते हो
हर धडकन, ज्यों तुम बसते हो
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
हां कुछ ऐसा ही करना
चेतन में अवचेतन में तुम
जाग्रत में हर सपने में तुम
इस युग में हर जन्मों में तुम
मेरे भीतर बहकर . रहकर ..
अपनी दृष्टि दे दो मुझको
अपनी शक्ति दे दो मुझको
फिर से दे दो मुझे वो शुचिता
स्वच्छ हो सकूं बनूं अमृता
कौमार्य मेरा फिर मुझ मे भर दो
सुहाग बनो तुम सांसे भर दो !
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
चेतन से अवचेतन कर दो ...
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
हां तुम कुछ ऐसा ही करना
-------------------------
- Show quoted text -
हां कुछ ऐसा ही करना
अपने नैनों से
अपने कानों से
अपने स्पर्श से
मेरे अस्तित्व में
समाहित हो कर
मेरे भीतर बहकर . रहकर ..
अपनी दृष्टि दे कर मुझको
अपनी शक्ति देकर मुझको
बस जाओ यूं कि ...
हां कुछ ऐसा ही करना
होंठ मेरे हों गीत तुम्हारे
स्वर मेरे हों कंठ तुम्हारे
हर सिहरन, ज्यों तुम छूते हो
हर धडकन, ज्यों तुम बसते हो
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
हां कुछ ऐसा ही करना
चेतन में अवचेतन में तुम
जाग्रत में हर सपने में तुम
इस युग में हर जन्मों में तुम
मेरे भीतर बहकर . रहकर ..
अपनी दृष्टि दे दो मुझको
अपनी शक्ति दे दो मुझको
फिर से दे दो मुझे वो शुचिता
स्वच्छ हो सकूं बनूं अमृता
कौमार्य मेरा फिर मुझ मे भर दो
सुहाग बनो तुम सांसे भर दो !
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
चेतन से अवचेतन कर दो ...
बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...
हां तुम कुछ ऐसा ही करना
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- Show quoted text -
शनिवार, 12 सितंबर 2009
... तो कोई बात बने
... तो कोई बात बने
पन्नो पर बिखरे पड़े हैं शब्द मेरे यहाँ वहाँ
इन्हें समेट पाऊँ तो कोई बात बने
स्याही सी पहेली है हर सूं जैसे रात का अँधेरा
सहर हो जाने दो तो कोई बात बने
जुल्फों से उलझे उलझे से हैं जज्बात मेरे
इन्हें संवार लूं तो कोई बात बने
आवारा हवा से हुए जाते हैं ख्यालात
उन्हें लगाम दू जरा तो कोई बात बने
ख्वाब सो गये हैं अब गहरी एक नींद में
उन्हें जगा पाऊँ तो कोई बात बने
एहसास सभी उसके बिखरे पड़े हैं बून्दों से
सांसों की माला में उन्हे पिरो लूं तो कोई बात बने
मेरे दिल में छिपा बैठा है बस के कोई चाँद सा
उसे चान्दनी का बना पाऊँ तो कोई बात बने
आ खुद ही मुझ को ढूंढो मुझे सम्भालो
मैं घर को लौट पाऊँ तो कोई बात बने
पन्नो पर बिखरे पड़े हैं शब्द मेरे यहाँ वहाँ
इन्हें समेट पाऊँ तो कोई बात बने
स्याही सी पहेली है हर सूं जैसे रात का अँधेरा
सहर हो जाने दो तो कोई बात बने
जुल्फों से उलझे उलझे से हैं जज्बात मेरे
इन्हें संवार लूं तो कोई बात बने
आवारा हवा से हुए जाते हैं ख्यालात
उन्हें लगाम दू जरा तो कोई बात बने
ख्वाब सो गये हैं अब गहरी एक नींद में
उन्हें जगा पाऊँ तो कोई बात बने
एहसास सभी उसके बिखरे पड़े हैं बून्दों से
सांसों की माला में उन्हे पिरो लूं तो कोई बात बने
मेरे दिल में छिपा बैठा है बस के कोई चाँद सा
उसे चान्दनी का बना पाऊँ तो कोई बात बने
आ खुद ही मुझ को ढूंढो मुझे सम्भालो
मैं घर को लौट पाऊँ तो कोई बात बने
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
लम्हा लम्हा पल पल छिन छिन
छिन छिन करते रहे तुम से प्यार
पल पल करते रहे बस इन्तजार
लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे
टिक टिक करती घडी इंतेज़ार की
देती रही पल पल मेरे सीने में जखम
जार जार रोता रहा एतबार का मंज़र
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम
लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे
थम थम वक़्त यूंही सरकता रहा
और हम, कदम दर कदम बढते रहे
जिन्दगी की रोशनी कहीं खोती रही
दम दम सिसकता सा सरकता रह गया यह दम
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम
और तुम्हारी याद में घुटने सा लगा यह दम
छिन छिन मिलने वाली छिन गयी हर ख़ुशी
बूँद बूँद आंसू टपकते औ' सिसकते हम
सिसक सिसक यूं जिंदगी चलती रही
थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो
जरा जरा सा क्यों करो एतबार तुम
भरा भरा है प्यार तो तुम मिल तो लो
थमी थमी सी जिंदगी पल पल गुज़र ही जायेगी
बहने लगेगी प्रीत , प्रीतम मिल तो लो
थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो
पल पल करते रहे बस इन्तजार
लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे
टिक टिक करती घडी इंतेज़ार की
देती रही पल पल मेरे सीने में जखम
जार जार रोता रहा एतबार का मंज़र
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम
लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे
थम थम वक़्त यूंही सरकता रहा
और हम, कदम दर कदम बढते रहे
जिन्दगी की रोशनी कहीं खोती रही
दम दम सिसकता सा सरकता रह गया यह दम
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम
और तुम्हारी याद में घुटने सा लगा यह दम
छिन छिन मिलने वाली छिन गयी हर ख़ुशी
बूँद बूँद आंसू टपकते औ' सिसकते हम
सिसक सिसक यूं जिंदगी चलती रही
थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो
जरा जरा सा क्यों करो एतबार तुम
भरा भरा है प्यार तो तुम मिल तो लो
थमी थमी सी जिंदगी पल पल गुज़र ही जायेगी
बहने लगेगी प्रीत , प्रीतम मिल तो लो
थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
चांद सलोना प्रीतम जैसा
भूखे की रोटी सा चांद
प्रेमी की महबूबा जैसा
राही का हमराही बनकर
साथ निभाता राह बताता
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
सूरज के घर भिक्षु बनकर
सन्यासी सा वह ज्योत मांगता
बदली संग रास रचाता
नभ में मोहक चित्र बनाता ..
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
दादी नानी का प्यारा चन्दा
कथा कहानी में छा जाता
बचपन में मामा सा प्यारा
अब, प्रेमी सा रूप बनाता
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
प्रीतम प्यारे तुम भी आओ
चन्दा बन मन में बस जाओ
अठखेली कर न तरसाओ
बन के चान्दनी ही छा जाओ
प्रेमी की महबूबा जैसा
राही का हमराही बनकर
साथ निभाता राह बताता
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
सूरज के घर भिक्षु बनकर
सन्यासी सा वह ज्योत मांगता
बदली संग रास रचाता
नभ में मोहक चित्र बनाता ..
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
दादी नानी का प्यारा चन्दा
कथा कहानी में छा जाता
बचपन में मामा सा प्यारा
अब, प्रेमी सा रूप बनाता
चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता
प्रीतम प्यारे तुम भी आओ
चन्दा बन मन में बस जाओ
अठखेली कर न तरसाओ
बन के चान्दनी ही छा जाओ
रविवार, 6 सितंबर 2009
अभिनन्दन
अभिनन्दन
सुबह सुबह की महकती हवा
नए जन्मे बच्चे सी ताज़ा
ज्यों धीमे धीमे आँख खोलती
पंख फैलाए चिडिया के नन्हे बच्चे सी
नयी कोपल सी कोमल महकती गुनगुनाती हवा ...
खिली हंसी सी खिली खिली सी धूप घर के आंगन में मीठी मीठी सी धूप
मौसम की शीतलता का पैगाम लाती गुनगुनी लुभावनी धूप ......
चहकती चिडियां
आँगन में रंग बिरंगी फूलों सी बिखरी
पांव पाव फुदकती दाना चुगती चिडिया... संदेसा देती खुले मौसम का ... सुहाने दिनों का ...
नन्हे नन्हे पैरों से भागती फिरती गिलहरियां
कभी कभार बेझिझक बेहिचक से हिरन...
चुपचाप चरते बिचरते आ जाते हैं घर के पिछवाडे में...
लगने लगता है बहार है यहीं कहीं करीब ही
देते हुये एक मुस्कान सी हर दिल में
एक उम्मीद सी हर नजर में
एक होंसला सा हर रूह में
हर दृश्य एक खबर है.. खुशी की खबर
ज्यों आकाशवाणी कर दी हो किसी ने
मन के गुलशन में इन्द्रधनुष छा जाने की
महक उठी हों जीवन की सांसें बागों के फूलों सी जग के रचनाकार ने करवट बदली है ...
नए मौसम का अभिनन्दन है
सुबह सुबह की महकती हवा
नए जन्मे बच्चे सी ताज़ा
ज्यों धीमे धीमे आँख खोलती
पंख फैलाए चिडिया के नन्हे बच्चे सी
नयी कोपल सी कोमल महकती गुनगुनाती हवा ...
खिली हंसी सी खिली खिली सी धूप घर के आंगन में मीठी मीठी सी धूप
मौसम की शीतलता का पैगाम लाती गुनगुनी लुभावनी धूप ......
चहकती चिडियां
आँगन में रंग बिरंगी फूलों सी बिखरी
पांव पाव फुदकती दाना चुगती चिडिया... संदेसा देती खुले मौसम का ... सुहाने दिनों का ...
नन्हे नन्हे पैरों से भागती फिरती गिलहरियां
कभी कभार बेझिझक बेहिचक से हिरन...
चुपचाप चरते बिचरते आ जाते हैं घर के पिछवाडे में...
लगने लगता है बहार है यहीं कहीं करीब ही
देते हुये एक मुस्कान सी हर दिल में
एक उम्मीद सी हर नजर में
एक होंसला सा हर रूह में
हर दृश्य एक खबर है.. खुशी की खबर
ज्यों आकाशवाणी कर दी हो किसी ने
मन के गुलशन में इन्द्रधनुष छा जाने की
महक उठी हों जीवन की सांसें बागों के फूलों सी जग के रचनाकार ने करवट बदली है ...
नए मौसम का अभिनन्दन है
गुरुवार, 3 सितंबर 2009
मन्नत
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
पेडों पर मन्नत की झंडियां
टूटते तारे से दुआएं .. मनौतियां ..
पलक के गिरे बालों से कभी
मन्दिर में घंटियां बांध कर कभी
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
तेरे द्वार नंगे पैरों से सफर तीरथ को जान ..
कभी मंगल का लंघन तो कभी शनि का दान ...
तेरी मन्नत के लिये रोज़े रमज़ान ...
शमा गिरजे मे रोज़ रोज़ तेरे ही नाम...
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
जैसी भी हो मन्नतें आधी अधूरी
तू ही प्रभू है तुझे ही करना है पूरी
मन खरीद ले तू ही मेरा ..
पूरा कर दे इस बाज़ार का दस्तूर
बिक जाऊं तेरे लिए ए मेरे प्रभु...
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
पेडों पर मन्नत की झंडियां
टूटते तारे से दुआएं .. मनौतियां ..
पलक के गिरे बालों से कभी
मन्दिर में घंटियां बांध कर कभी
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
तेरे द्वार नंगे पैरों से सफर तीरथ को जान ..
कभी मंगल का लंघन तो कभी शनि का दान ...
तेरी मन्नत के लिये रोज़े रमज़ान ...
शमा गिरजे मे रोज़ रोज़ तेरे ही नाम...
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
जैसी भी हो मन्नतें आधी अधूरी
तू ही प्रभू है तुझे ही करना है पूरी
मन खरीद ले तू ही मेरा ..
पूरा कर दे इस बाज़ार का दस्तूर
बिक जाऊं तेरे लिए ए मेरे प्रभु...
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !
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