बुधवार, 27 मई 2009

amrita

में नहीं न हूँ वोह
जो आप सम्झेई हैं मुझे
मै गुम नाम बेनाम
शायद हूँ मै बदनाम
सुबह की धुंद जो छट जेइगी
शाम का धुंआ जो हो रहे गा धुंआ
छाया हूँ या की हूँ माया
छलावा हूँ या की हूँ सपना कोइ द्रादनाक
संध्या हूँ की सन्नाटा
शमशान हूँ या की वीराना कोई
कोई भूल नहीं
शूल चुबा सीने में हूँ मैं
इक टीस
इक चीख
एक हूक
उठती हेई जो सीने में रेह्रेह कर
दर्द हूँ दिल का
या हूँ रोगे कोई
एक सिसकी
इस सुबकी
इक आह हूँ दुब्बी दुब्बी
एक कतरा आन्सो
जो आँख से टपका और भिखर गया
नहीं में वोह नहीं जो समझे थे तुम मुझे
अमृता...............................................तो बस यूंही
क्यूं की तुम कहते हो

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