चाद निकल आया हे अँधेरी रात में
जुगनू टिमटिमा रहे हैं आँगन में
खुशबूएं फेल गईं हैं फिजाओं में
फूल भी खिलखिला के हस रहे हैं बाग़ में
अन्ग्र्दाई सी आ रही हे बादलूँ में
मस्ती सी दीक परती है हवाओं में
खुमारी सी छा गयी हे जिंदगी में
उमंगें जाग गयी हैं मनमें
गुदगुदी सी हो रही है रूह में
घंटियाँ बज उठी तन में में
कम्पन सी जग गयी हे ओंठूं में
मुस्कुराहट से फेल गई हे आन्खून में
देखो हरकत सी हो रही है रुके हुए दिल में
चुपी सी लग्ग गयी है जुबान में
ख़ुशी के आनसु आ के रुके हैं मेरी आन्खून में
आज फिर से पुकारा हे मुझे किसी ने प्यार में
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