एक धरकन छोटी सी
बैठी घुटनों पर ठुदी तिकाएय
घर की देहलीझ पर
कुछ इस तरह टिकटिकी लगाए
राह पर
मानो हो किसी राही के इन्तजार में ..........
बैठी रही बरसून
बरसून बेठी रही
फिर अचानक एक दिन
दिल के द्वार पर दस्तक दी
एक धड़कते दिल ने
न जाने काया आया मन में उठ के चल दी
संग होली उस दिल के
न कुछ कहा
न ही पुछा
बस यूंही संग संग धरकने लगे दोनों
समा गए इक दूजे मेंईसे
न जुदा होंगे जैसे
फूल से खुशबू
हवा से रवानी
लहर से पानी
चाँद से चाँदनी
सूरज से रौशनी
एक ने कही दुसरे ने मानी
यूंही चलती गयी जिंदगानी
ना कही ना जानी
और सभी ने मानी............
बस यही है मेरी प्रेम कहानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें