अन्धेरून का
चांदनी ने ओढा है घूँघट
मुस्कान मूह छिपे बैठी है
उदासी के आढ़ में
आन्सूनूं का पर्दा करती हैं
यह मुस्कुराती आँखें
दिल बेबाक
धरकने सेडरता है
यादूं के ढेर पर
पहरे लगा दिए हैं
गठरी पयार की
बाहूं में कस ली है
बातें सब छिपा दी हैं
काले संदूक में इन्त्जारून को किवाड़
भीतर से कर दिया है बंद
बतियान सब गुल
कर के रूह के घर की
खिड़की में जरा सा छेड़ है
हर आहट पर झाँक झाँक लेता है मन
डरता है ना ..............................
कही नजर ना लग जाए
मेरी चाहत को
रकीबून की
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