मंगलवार, 15 जनवरी 2013

कही नजर ना लग जाए



चांदनी  ने ओढा है घूँघट 
 अन्धेरून  का 
मुस्कान मूह छिपे बैठी है
 उदासी के आढ़ में 

आन्सूनूं का पर्दा करती हैं
 यह मुस्कुराती आँखें 

दिल बेबाक
 धरकने सेडरता है 

यादूं के ढेर पर
पहरे लगा दिए हैं 

 गठरी पयार की
 बाहूं में कस  ली है
बातें सब छिपा दी हैं
 काले संदूक में 
 इन्त्जारून को किवाड़
भीतर से  कर दिया है बंद 

बतियान सब गुल
 कर के रूह के घर की 

खिड़की  में जरा सा छेड़ है 
 हर आहट पर झाँक झाँक लेता है मन 
डरता है ना ..................................
कही नजर ना लग जाए
  मेरी चाहत को
रकीबून की 

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