सोमवार, 25 मई 2009

muhhbat

पत्थरों के इस शहर में भी मोहब्बत के दरख्त बाकी हैं...
अमृत बरसता है इस नखलिस्तानी टापू में निरंतर झर झर ....
जीवन की सारी रसभरी मुस्कान यहाँ बाकी है...
प्यार मरता नहीं तू 'अमृता' बन बरसा कर, सर्वदा निर्झर...

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