किसी ने कहा ...
किसी ने कहा ...अमृत नाम में कुछ तो है
जो जीवन दायिनी है ...
तभी तो 'अमृता' का ख्याल ही भर देता है
रग रग में ऊर्जा, उमंग और उत्साह !
अमृत का अस्तित्व कहीं है
तो वहीं कहीं है
जहां है अमृतघट का सिन्धु, अमृता - अमृत परिसर ...
मन से छुअन सिहरन देती है
तन की छुअन सा अहसास भी ..
अमृत बरसा जाती है
च्यवनप्राश बन जाती है
आती है चिर युवा होने का अहसास जगाने ..
कहाँ बसा है वह अमृत घट ,
कहीं तो नहीं सिवा ह्रदय के
जगाता है जीवन जीने की चाह
अमरता - नश्वरता के बीच का सेतु सा,
दौडा देता है खोज में उस कस्तूरी मृग की
जो है सदा से मेरे भीतर
सुगन्धित करता रहता है
चिरंतन निरंतर .. सदा सर्वदा... अमृता की तरह...
4 टिप्पणियां:
अमृता प्रीतम का आभास सा है, आप की रचना में। थोड़ा और गहरे जाँ
य तो बात बन जाए।
रचते रहें। निखार के लिए आवश्यक है।
adbhut hai ji adbhut !
badhai !
kya baat hai! narayan narayan
bahut sundar likha hai aapne.
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