सोमवार, 6 जुलाई 2009

bhram

रिशवतें देतें हैं हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
ढूँढ़ते हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिझाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हरियालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सू है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किन्तु लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलों के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठते ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गल्तियों का पुतला
अपने लिए तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + दमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझसे
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ सृष्टी तेरी
तू ही है कायनात सारी
सोचूँ महसूस करूं
हर कण में तुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हें हम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

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