पंख पसारे भोली चिडिया !
सोचा तो ये था !
कि  सफ़र करते करते उम्रभर ..
जन्मो के सफ़र  तय करेंगे ..
मिला  जो भी उसे भी साथ ले लिया 
कि  सफ़र हसीं हो गया
जो छोड़ गए साथ
पर  उन को पीछे नहीं छोड़  सके...
ऐसे ही इक दिन
सफ़र के किसी पडाव पर
इक जाना पहचाना सेहर
बचपन का जवानी का सेहर
 जो गुजरा नज़र से
 जुटा के हिम्मतें बचपन के प्यार की
आँखों  में सजा कर  सपने पुराने
सब दूरियों से दूर ..
सदियों के  फासले  पल में तय कर गए
 आ गए  मेरे मन के  घर -आँगन में
जहां आज भी किसी कोने में पड़े थे 
सपने बचपन से
कुछ  सहमे से इन्तजार में किसी के
उन पर ढल चुकी थी किसी और के हक़ की छाया
जिसे पलकों  से अपनी,  आपने उघाडा
 फिर धो के प्यार के आंसुओं  से
 और  सपने नए से सजाए  आप ने
थामा हाथ और ले चले मेले में
बह निकली झरने सी प्यार की निर्झरनी
 बैठा के दिल की छाया  में
सिखा दिया जीना और प्यार करना
अब उड़ने चेह्काने लगी जो चिडिया
पंख क़तर दिए  सैयाद ने
डाला सोने के पिन्जरेमें
और उड़ा ले गया  सात समंदर पार
 बहुत दूर 
इक  पत्थरों  की दुनिया में
 जहां ना  मित्र ना प्यार
न प्रीत का संसार
तभी
एक दिन  आया कोई मुसाफिर
अनजाने में खोल दिया पिंजरा दिल का
और पंख  पसारे फुर हुई चिडिया
जा बैठी सात समंदर पार
फिर  उसी दिल के घरोंदे की मुंडेर पर ....
 
 
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