घुप अँधेरा
काली स्याह रात अमावास  की
चमकती बिजलियाँ 
गरजते बादल
बड़ी भयानक रात है
यह जिंदगी
अद्भुत अनोखी
चाँद बादलों में मुँह छिपाए है डर से
तारे भी सब खो गए
 
घनघोर जंगल है सब ओर 
वीराने सन्नाटे खामोशी है सब ओर
फिर भी  
अकेले नहीं हैं हम
भीड़ हैं यहाँ
मेला लगा है
मजमें हैं सब और
कहीं नाग सरसराते हैं
तो कहीं उल्लू पुकार कर रहे
कभी सुनती हैं चमगादडों के फड फडाने 
की आवाजें
कहीं कहीं से कोई पक्षी भी गलती से चहचहा उठते हैं
 यूं तो जुगनू हैं कहीं कहीं
दिल बहलाने को
घबरा के हम एकेले से
ढूँढ़ते फिरते हैं कोई सहारा
पास है इक लाठी सुरक्षा के लिये  
बस एक मात्र  सहारा
उस का
यूं ही गुजरती रात सी इस जिंदगी में
जब कोई ठोकर लग जाए  अचानक
मुख से निकले हे  राम
तो इक बिजली सी कौंध जाए हर सू  
गूँज जाए  इक नाम
हे  राम
भागे चले आयें सब चाँद  तारे
बादल छत  गे डर कर
नई उम्मीदों की किरने आ गिरी झोली में
इक ज्योति छू  गई इन बंद आँखों के दीयों में
फैल गया परकाश हर सू  
वोह गयी लाठी
खो गए अँधेरे जीवन के
जो थामा  हाथ खुद
राम ने
मेरे और कर लिया इस भव सागर से पार
हे  राम
 
 
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