सोमवार, 6 जुलाई 2009

ishq

लैला मजनू का ज़माना भी क्या खूब था
हीर रांझा की दुनिया भी निराली थी
इन के इश्क ने कर दिया था जमाना दुश्मन
मुलाकातें थी कितनी अधूरी
मिल ना पाए वोह जिंदगी पूरी
पर आज भी दुनिया किस्से सुनती सुनाती है
की मोहब्बतें थी तो उनकी ही थी पूरी
बचपन का हुआ प्यार
मरते दम तक निभाया
वादा इश्क का मर के भी निभाया
और आज का इश्क
आज भी है बच्चे बच्चे को है
हो जाता है पहली नजर में ही
सेटे लाईट का ज़माना जो है
सब होता है बड़ी रफ़्तार से
ना नज़रों का मिलने
ना वो हिरन ना कबूतर
ना कोई चिठ्ठी ना पत्र
ना डाकिया ना दूत कोई
पल भर में ही
इन्टरनेट पर ही
बिन देखे बिन सुने बिन मिले
एक्सप्रेस मेल की रफ़्तार से होता है इश्क भी
पल में जीने मरने के वादे
पल भर में जन्मों के बंधन
कभी ना बिछड़ने की कसमें
पर जितनी जल्दी यह इश्क की गुड्डी चढ़ती है आकाश में
उतनी ही जल्दी कट के
फड फडाती लडखडाती
कभी इस पेड़ पर तो कभी उस छत पर टंगी मिलती हैं
जो कल हुआ इश्क वोह आज हवा हो गया
और शायद आज नया किसी और से होने को है तैयार
यह इश्क नहीं नज़रों का धोका है
दिल बहलाने को लेकिन ख्याल अच्छा है

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