शनिवार, 18 जुलाई 2009

आपके नाम

थामा जो आपने हाथ
लगा बचपन से है साथ

एक बहती धारा हूँ
जिसे थामा इक मौज ने
आओ दोनों मिलके बह चलें
उस सागर की ओर
जिसका न कोई ओर ना छोर

थामा जो हाथ फिर
साथ न छोडेंगे
चलते चलते साथ फिर
साथ ना छोडेंगे

ये वादा है तुमसे
ज्यूं ज्योति संग ज्योत जले
मिले सागर से
हो सागर जैसे

मैं मैं ना रहूँ
तू तू ना रहे
मुझसे मैं
तुझसे तू खो जाये
तुझमे मैं खो जाऊं

आ मिल आलिंगन में
कुछ ऐसे दोनों खो जायें
कुछ ऐसे

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

पंख लगालूँ ख्वाबों के
उड़ती जाऊं दूर गगन में
इस डाली से उस डाली
ठुमुक ठुमुक कर पाँव पाँव भी
कभी पेड़ तो कभी छाँव भी

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

भेद नहीं घर में आँगन में
उजडे खँडहर बसे महल में
भेद नहीं जंगल खेतों में
घर के आगे , पिछवाडों में
मुन्ना गुडिया खेल खेलते
मैं भी अपना मीत ढूँढती

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

चहकूं बीच घने जंगल में
कुहकूं बीच हरे खेतों में
आये बुढापा या यौवन हो
मदमाता पन हो रातों में

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

चोंच प्रेम की तिनका चुनती
पल पल यादों के आँगन में
इक इक धड़कन बीन बीन कर
सदा निरंतर सपने बुनती
मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर
बड़े जतन से ठियाँ सजाती
मौसम चाहे जो हो लेकिन
प्रेम मगन हो बस इठलाती

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

आशाओं का घने पेड पर
मन का एक घरोंदा है
मन के मीत की उम्मीद लिए ही
तिनका तिनका जोड़ा है

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

मीत मिल गया
प्रीत सज गई
गीत बज गया
रीत चल गयी

प्रेम मगन हूँ शब्द चुक गए
प्रेम पुजारन कहीं खो गयी
बचे कहाँ तुम बची कहाँ मैं ?
दोनों मिल कर एक हो गए
मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

सोमवार, 13 जुलाई 2009

गुनहगार

सूने नयनों के कौरों से,
देखे हैं टपकते सपने मैंने
चाहा तो था कि दौड़ कर चूम लूं
पलकों पे सजा लूं अपनी
थाम लूं लबों से,
अपना बना लूं , तेरे सपनों को

इस से पहले कि ये सपने
नसीब के हाथ से छूटे , टूटे और बिखर जाए ..
इन्हें नींदे मिलें , मंजिल मिले..
कि इसी कोशिश में समेट लूँ सारे गम भी तेरे ...
यह दिल है कि उधेड़ता बुनता रहता है तमन्नाएँ , हसरतें
कि तेरे साथ हो शुरू फिर एक कहानी प्रीत की
और फिर से , मचलने लगे दिल
हो फिर से धड़कनों में हरारत
दिल फिर से करे बातें तेरी रात रात भर ...
मैंने अपनी मुस्कानों में से
कुछ मुस्काने संजोई हैं जीने के लिए तेरे खातिर...
कुछ साँसे भी माँगी हैं सीने के लिए तेरे खातिर ...

अफ़सोस !
किस्मत बड़ी है और बहुत छोटे हैं मेरे हाथ
अंजुली भर ना पाई खुशियाँ का साथ
खोखली खुशियाँ सूनी मुस्काने
अधूरी कहानी फीकी प्रीत
अँधेरी रातें खाली हाथ....
मैं संभाल न पाई तेरे सपने की सौगात ....
आज भी हैं सपने मुझ पर उधार है तेरे
मुझे माफ़ करना मेरे मन मीत
कि गुनहगार हूँ मैं तेरी

बुधवार, 8 जुलाई 2009

seep ka moti

बचपन की इक भली सी याद
आज भी है मेरे पास
छुपा के रखी है नज़रों से दुनिया की
की लग ना जाई नजर दुनिया की
बचपन की मीठी सी याद
जब सपने मेरे
तुम देखा करते थे मेरी आन्खून में
हाथ थाम कर ले जाते
दूर बहुत दूर मुझे मेरे ही ख्वाबो की दुनिया में

जवान हों सपने इस से पहले
पहचाने चेहरा तुम्हारा उस से पहले
छोर मेरे सपनो का साथ
रहने चल दिए तुम किसी और के सपनो के साथ

बरसों झाँका हर नजर में
ढूँढती रही सपनो को अपने
खोजा तुम को हर रोज़ नींदों में
गली गली रातों की छानी

हर अनजाने को समझा तुम हो
हर कागज़ के टुकरे को समझा ख़त तुम्हारा
हर पते को समझा पता तुहारा
ना नाम ना निशाँ ना कोई ख़त ही मिला तुम्हारा

अधूरी थी कोशिशें मेरी
तभी ना हो पाईं पूरी
भूल गई मैं हार गई मैं
थाम लिया सच का दामन
मान लिया तुम ना आओगे

बंदकर सपनों को काले बक्से में
कर दिया जुदा हो गई बिदा
चली दी ससुराल हुई बेहाल

भूली बचपन के सपने
मिलगे सब मेरे अपने
यूंही जीती रही ले खाली खाली रातें
बिन सपनो के मिली बच्चों की सौगातें

फिर इक दिन यूंही सदियों बाद
लो आई फिर तेरी याद
कानो ने सुनली दिल की पुकार
देखी सूरत जानी पहचानी
सुनी कहानी सुनी सुनाई

घबराई सी बहकी बहकी बात
आ कर थामे मेरे हाथ
जागने लगे मेरे बचपन के खाब
सपने सभी लौट आये आज

बहार निकली फिर अपने सीप से
बनने को मोती
मचला मन बहुत कोशिश की
काश में उन की होती

पलक झपकते टुटा सपना
वोह ना था कोई अपना
आज फिर मेने देखा वोह सपना
जो कभी ना हो पाया अपना

रह गई अपना सा मुह ले कर
बंद हो गई में फिर सीप में
बस गई सीप को अपना घर कर
सो गई में फिर रो रो कर

काश में ना होती सीप का मोती
काश में तुम्हारी होती
फिर ना कभी में यूं रोती
रात भर में उस सपने के संग सोती

सोमवार, 6 जुलाई 2009

पंख पसारे भोली चिडिया !

पंख पसारे भोली चिडिया !

सोचा तो ये था !
कि सफ़र करते करते उम्रभर ..
जन्मो के सफ़र तय करेंगे ..

मिला जो भी उसे भी साथ ले लिया
कि सफ़र हसीं हो गया
जो छोड़ गए साथ
पर उन को पीछे नहीं छोड़ सके...


ऐसे ही इक दिन
सफ़र के किसी पडाव पर
इक जाना पहचाना सेहर
बचपन का जवानी का सेहर
जो गुजरा नज़र से
जुटा के हिम्मतें बचपन के प्यार की
आँखों में सजा कर सपने पुराने
सब दूरियों से दूर ..


सदियों के फासले पल में तय कर गए
आ गए मेरे मन के घर -आँगन में
जहां आज भी किसी कोने में पड़े थे
सपने बचपन से
कुछ सहमे से इन्तजार में किसी के
उन पर ढल चुकी थी किसी और के हक़ की छाया
जिसे पलकों से अपनी, आपने उघाडा
फिर धो के प्यार के आंसुओं से
और सपने नए से सजाए आप ने
थामा हाथ और ले चले मेले में
बह निकली झरने सी प्यार की निर्झरनी
बैठा के दिल की छाया में
सिखा दिया जीना और प्यार करना


अब उड़ने चेह्काने लगी जो चिडिया
पंख क़तर दिए सैयाद ने
डाला सोने के पिन्जरेमें
और उड़ा ले गया सात समंदर पार
बहुत दूर
इक पत्थरों की दुनिया में
जहां ना मित्र ना प्यार
न प्रीत का संसार


तभी
एक दिन आया कोई मुसाफिर
अनजाने में खोल दिया पिंजरा दिल का
और पंख पसारे फुर हुई चिडिया
जा बैठी सात समंदर पार
फिर उसी दिल के घरोंदे की मुंडेर पर ....

ek dua

क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नयनों में
जो पा सकें दरस तेरा

है जो तू हर सू बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगों में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को

ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करूं अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक

दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम

बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवन भर की कड़वाहट ढोंग और नफरतों से
कैसे पड़े तेरी पाक कृपा की नज़र मुझ नाचीज़ पर मेरे हरी

लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्नतें में करूं तुझ से
आँखों में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा प्रभू मेरे

दे दो वो नजर जो दीदार करूं तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे अपनाए
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
माँज डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से

करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरि से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ

बस यही है दुआ मेरे हरि

bhram

रिशवतें देतें हैं हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
ढूँढ़ते हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिझाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हरियालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सू है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किन्तु लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलों के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठते ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गल्तियों का पुतला
अपने लिए तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + दमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझसे
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ सृष्टी तेरी
तू ही है कायनात सारी
सोचूँ महसूस करूं
हर कण में तुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हें हम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

intjaar

खामोशियाँ छाई रही यूंही बरसों
मदहोश से पड़े रहे जज़्बात मैखाने के किसी कोने में
ढूँढती रहीं मेरी चुप्पियाँ किसी को
दिल मेरा भटका गली गली
भीढ़ में हर चेहरा लगा तेरा ही चेहरा
आवारा सी हो घूमती रही सोच मेरी
मेले में मैं रही अकेली
एक उंगली जो थामी थी बचपन ने कभी
आज बूढी हुई उंगलियाँ
खोजती फिर रही हैं उन्ही स्पर्शों को
शून्य सा हो वक़्त भी चलता रहा थम थम कर
थम गई जिंदगी सदियों पहले से
भागते फिरे जुगनुओं की पीछे रात भर
आवारा ख़्वाबों को बाँध बाढ़ रखते रहे
जिंदगी टंगी रहगी रही दरख्तों पर कटी पतंग सी
आज भी है
इन्तजार इन बुझी बुझी आँखों में

hi raam

घुप अँधेरा
काली स्याह रात अमावास की
चमकती बिजलियाँ
गरजते बादल
बड़ी भयानक रात है
यह जिंदगी

अद्भुत अनोखी
चाँद बादलों में मुँह छिपाए है डर से
तारे भी सब खो गए

घनघोर जंगल है सब ओर
वीराने सन्नाटे खामोशी है सब ओर
फिर भी
अकेले नहीं हैं हम
भीड़ हैं यहाँ
मेला लगा है
मजमें हैं सब और
कहीं नाग सरसराते हैं
तो कहीं उल्लू पुकार कर रहे
कभी सुनती हैं चमगादडों के फड फडाने
की आवाजें
कहीं कहीं से कोई पक्षी भी गलती से चहचहा उठते हैं
यूं तो जुगनू हैं कहीं कहीं
दिल बहलाने को
घबरा के हम एकेले से
ढूँढ़ते फिरते हैं कोई सहारा
पास है इक लाठी सुरक्षा के लिये
बस एक मात्र सहारा
उस का
यूं ही गुजरती रात सी इस जिंदगी में
जब कोई ठोकर लग जाए अचानक
मुख से निकले हे राम
तो इक बिजली सी कौंध जाए हर सू
गूँज जाए इक नाम
हे राम
भागे चले आयें सब चाँद तारे
बादल छत गे डर कर
नई उम्मीदों की किरने आ गिरी झोली में
इक ज्योति छू गई इन बंद आँखों के दीयों में
फैल गया परकाश हर सू
वोह गयी लाठी
खो गए अँधेरे जीवन के
जो थामा हाथ खुद
राम ने
मेरे और कर लिया इस भव सागर से पार
हे राम

ishq

लैला मजनू का ज़माना भी क्या खूब था
हीर रांझा की दुनिया भी निराली थी
इन के इश्क ने कर दिया था जमाना दुश्मन
मुलाकातें थी कितनी अधूरी
मिल ना पाए वोह जिंदगी पूरी
पर आज भी दुनिया किस्से सुनती सुनाती है
की मोहब्बतें थी तो उनकी ही थी पूरी
बचपन का हुआ प्यार
मरते दम तक निभाया
वादा इश्क का मर के भी निभाया
और आज का इश्क
आज भी है बच्चे बच्चे को है
हो जाता है पहली नजर में ही
सेटे लाईट का ज़माना जो है
सब होता है बड़ी रफ़्तार से
ना नज़रों का मिलने
ना वो हिरन ना कबूतर
ना कोई चिठ्ठी ना पत्र
ना डाकिया ना दूत कोई
पल भर में ही
इन्टरनेट पर ही
बिन देखे बिन सुने बिन मिले
एक्सप्रेस मेल की रफ़्तार से होता है इश्क भी
पल में जीने मरने के वादे
पल भर में जन्मों के बंधन
कभी ना बिछड़ने की कसमें
पर जितनी जल्दी यह इश्क की गुड्डी चढ़ती है आकाश में
उतनी ही जल्दी कट के
फड फडाती लडखडाती
कभी इस पेड़ पर तो कभी उस छत पर टंगी मिलती हैं
जो कल हुआ इश्क वोह आज हवा हो गया
और शायद आज नया किसी और से होने को है तैयार
यह इश्क नहीं नज़रों का धोका है
दिल बहलाने को लेकिन ख्याल अच्छा है

soch

कुछ सोच में पड़ गए हैं ख्वाब मेरे
कैसे दे पाऊँगी साथ
कयूं कर चल पाएंगे उन राहों पर
की जज्बात तुम्हारे
ख्वाब भावनाएं सब के सब
हैं सागर से गहर गंभीर
जब से जज्बातों ने मेरी
थामी है उंगली तेरे गंभीर जहन की
कदम कदम चलने की कोशिश कर रहे हैं
गिरते पड़ते
लडखडाते नयी राहों पर
चल पड़े हैं खोजने माजिलें नई
गर बना रहे यूं ही साथ हमारा
थामे रहो तुम हाथ हमारा
तो शायद हो रहेगी सर मंजिलें अपनी
आज जो दिल की जमीन
नहीं पहचानती इन हलके ख्यालों के कदमो को
आज जो सुनाई नहीं देती आवाज इन खोखले ख़्वाबों की
कल जब यूंही साथ साथ चलते हो रहूँगी में तुमसी
ये ही पाँव भारी हो जाएं गे
अपने कुछ नक्श छोड़ जाएंगे
कल आने वाली पीढी फिर इन्ही नक्शे क़दमों पे चल
कर लेंगे मंजिलें सर
जो हम ने किये सफ़र तय
वोह मंजिलें हमारी औलादें पा जाएंगी
जो सफ़र रहगे हमारे अधूरे
वोह करेंगे हमारे बच्चे पूरे
तो शायद होंगे हमारे अधूरे ख्वाब पूरे

churiyaan

चूडियाँ
रंग बिरंगीइंदर धन्नुष सी चूड़ियाँ
लाल हरी नीली पिलीसब रंगून की चूद्रियाँ
माँ बहन पत्नी बेटी भी पहने चूड़ियाँ
मौसो चची भुआ दादी नानीमामी ने भी पहनी चुरियाँ
लाल हरी नीली पिली चुरियाँ


कांच की लाख की स्टील की रबड़ की
सोनेकी चांदी की चूड़ियाँ
घुंगरू वाली वाली नाग्गून जडी नगीने जडी
हर औरत का सिंगार करें हरी भरी चूड़ियाँ


हर अवसर पर पहनी जाएं चूड़ियाँ
लक्ष्मी जो जन्मी पहनाएं काली चूड़ियाँ

नजर न लगे कहीं मेरी दुलारी की चूड़ियाँ
पहने नन्हे हाथ कभी चांदी की सोने की
घुंगरू वाली चूड़ियाँ

रोंनं झुन करती कभी खनकती ी
घर की रौनक चूड़ियाँ

पीले हो जाएं हाथ जो तो पहने
लाल चूडा लाल हरी चूड़ियाँ
सुहागन पहने लाल हरी नीली पिली नीली चूड़ियाँ
माथे टीका नाक में नथनी पायल कुमकुम तगरी झुमके
अन्गोठी कजरा गजरा सब हैं निभाते साथ हैं ऐसी हैं यह चूड़ियाँ
यह सुहागन की चूड़ियाँ

ये सहेली सभीकी लाल हरी नीली पिली
सोने चांदी की कांच की चूड़ियाँ

मैं भी पहनू तुम भी पहन हम सब पहने
यह प्यारी चूड़ियाँ
जीवन भर यह साथ निभाएं पर जब कोई अपना छोरे जाए साथ
टूट टूट जाएं चूड़ियाँ

सगे सम्बन्धी सखी सहेली
मिल कर सभी तोड़ डाले चूड़ियाँ
फिर न सजें ना भाएं
उसी कलाई में वही
लाल हरी नीली पिली चूड़ियाँ

सुख के दुःख की कथा सुनें यह रंगीली चूड़ियाँ
बचपन में खिलौने टूटी फूटी चूडिआं
सुहागन के दिल के तुक्रे यह रंगीली चूडिआं
विधवा की दुःख भरी कहानी यह निगोरी चूड़ियाँ
हाय
कितनी प्यारी हुआ करती यह चूड़ियाँ
अब न भाएं यह सारी चूड़ियाँ

हर औरत का गहनाहर कुंवारी का सपना
हर बच्ची का शौंक हर अल्हड का सजना सजाना चूडिआं

कितनी प्यारी बहुत सारी मन को भाएं कलाई मेंसज जाएं
लाल हरी नीली पिली यह सारी चूडिआं

रविवार, 5 जुलाई 2009

aati to gi yaad meri

जानती हूँ मेरे चले जाने के बाद
मुझ से बिछ्र के जाने के बाद
तुम्हें भीमेरी तरह मेरी याद तो बहुत आती होगी
जब जब बस अड्डे से गुजरते होगे
मेरी याद तो जरूर आती होगी
जब भी घर की देहलीज से कोई लौट लौट जाता होगा
उस में भी मेरी ही परछाई दिखाई देती होगी
कभी जब लम्बी ड्राइव पर अकेले जाते होगे
फ्रंट सीट का खाली पन अखरता होगा
और तब तो मेरी याद अवश्य ही आती होगी
जब जब एकेले बैठ चाएय के कप पे कप पीते होगे
तो कोई साथ दे उस के लिएय ही सही
मेरी याद तो फिर भी आती ही होगी
जब भी कोई करता होगा शिकवा शिकायत
मेरी याद दिलाता तोहोगा
लडू चाहे किसी से लड़ाई मेरी भी याद आती तो होगी
जब जब किताब पड़ने को बैठे होगे
उन में पड़े सूखे पत्ते याद मेरी दिलाते ही होंगे
उस काले बक्से से जब जब पुराने ख़त निकल पड़ते होगे
मेरी याद मुमकिन है सताती तो होगी
हर रोज़ जब निकालते हो चदर की सिलवटें
तो याद मेरी है जो तुम से लिपट लिपट जाती होगी
जब जब फ़ोन की घंटी बजती होगी
तुम्हें लगता तो होगा की मेरी ही कॉल होगी
रोज़ कोम्प्पुटर ऑन करते ही मेरे सन्देश ना पा कर
मेरी बहुत याद आती होगी
हर छूती के दिन इन्तजार करते होगी जब मेरे
में नहीं आती तो मेरी याद तुम्हें बहुत सताती तो होगी ना
इक बार जो बुला लोगे प्यार से में लौट आऊंगी
में गया वक़्त नहीं की फिर आ ना सकूं
बस एक बार आवाज दे कर तो देखो
लो में तो आ भी गई

achetan mein

क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नैय्नूं में
जो पा सकें दरस तेरा

है जो तो हर सु बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगून में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को

ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करून अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक

दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम

बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवान भर की कड़वाहट दोंग और नाफ्रातून से
कैसे पड़े तेरी पाक किरपा की नज़र मुझ ना चीज़ पर मेरे हरी

लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्तें में करून तुझ से
आन्खून में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा परभू मेरे

देदो वोह नजर जो दीदार करून तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे उपनाएं
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
मांझ डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से

करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरी से हरी से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ

बस यही है दुआ मेरे हरी

tum ho to

रिशवतें देतेंहें हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
दूंध्तें हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिजाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हर्यालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सु है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किनतू लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलूँ के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठे ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम्देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गलतियूं का पुतला
अपने लिएय तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + डमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझ से
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ श्रृष्टि तेरी
तू ही है कायनात साड़ी
सोचूँ महसूस करून
हर कर्ण मेंतुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हेंहुम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

rail ki dopatriyaan

rail ki do patriyaan

aamne saamne rehte bhi
milti naheen kabhi
door bahut door
aabhaas hota hai unke milne ka
par kahaan mil pati hein taa umar


par humyoon to juda naheen hein
hum mile thei bichharne ko
he shaayad aur shukar hai na malki ka
kiaaj bhi hein to aamne saane
bhale hi milte naheen
milte hein kabhi kabhi

bhale hi milte hein
jub koi tisri patri
aa kar humein jore deti hai
hum jure hein

humari soch
humara ateet
humari udaan
humare nek irade
humare wishwaas
bharose humare
humare sukh
humari khushiyaan
woh bachpan ki sharartein
woh ma ki maar
woh jhule se girna
woh choti choti sanjhein
woh lardna jhagarna
woh pyaar
woh sehme sehmein hum
wih raaz woh beeteen batein
woh mil ke rona woh bicharna
woh hasna
aur phir se woh pyar
yeh sub jore hai hum ko tum ko
phir bahle hi na milein
woh rail ki do partiyaan



hum hein to saath
aamnei saamne
maano thame hoon haath
umar bhar ke liey
ek patri kabhi
doosri ko peeche
ekele naheen chorti
rakhti hai saath

woh rail ki do patriyaan

शनिवार, 4 जुलाई 2009

parchai

खामोशियाँ छाई रही यूंही बरसून
मदहोश से परे रहे जज्बात मैखाने के किसी कोने में
ढूँढती रहीं मेरी चुपियाँ किसी को
दिल मेरा भटका गली गली
भीरुं में हर चेहरा लगा तेरा ही चेहरा
आवारा सी हो घोमती रही सोच मेरी
मेले में में रहइ अकेली
एक अनगुली जो थामी थी बचपन ने कभी
आज बूदी हुई उंगलियाँ
खोजती फिर रही हैं उन्ही स्पर्शून को
शून्य सा हो वक़्त भी चलता रहा थम थम कर
थम गई जिंदगी सदियूं पहलेसे
भागते फिरे जुगनुओं की पीछे रात भर
आवारा ख्वाबउन को बाँध बाढ़ रखते रहे
जिंदगी तंगी रहगी रही दर्खून पर कटी पतंग सी
आज भी है
इन्तजार इन बुझी बुझी आन्खून में