रविवार, 22 नवंबर 2009

कैसा यह अहसास मुझे अब !!

एहसास सा यह होने लगा है ।
करीब मेरे कोई आने लगा है ।।

दिल-ओ-जाँ से जैसे कि चाहने लगा है ।
कुछ प्यारा सा मीठा सा होने लगा है ॥

कुछ डर सा भी भी तो यूं लगने लगा है ।
कि सोया था अब तक वो प्यार जगने लगा है ।।

उमंगें, अंगडाइयां लेने लगी हैं ।
और मन भी भर भर के आने लगा है ॥


कोई क्यों इतने नज़दीक़ आने लगा है ।
क्यों दिन में सपने दिखाने लगा है ॥

क्यों मासूम दिल को धडकाने लगा है ।
क्यों एहसास मीठा वो जगाने लगा है ॥

शायद वो प्यारा सा लगने लगा है ।
या शायद मुझे प्यार होने लगा है ॥

बुधवार, 4 नवंबर 2009

जब तक

जब तक नज़रें थी अपने पर , ख़ुद को ही देखती थी मैं ,
जब से मिली तुम से नज़र, ख़ुद को देखना भूल गई ,

जब तक मिली ना थी तुमसे, खुद को ही जानती थी
जब से मिलना हुआ तुम से, खुद से मिलना भूल गई ,

जब तक रहती थी अपने घर, ख़ुद के साथ ही रहती थी ,
जब से आ गई घर तुम्हारे, खुद के घर का पता भूल गई

जब तक अपनी दुनिया में थी , लौट आती थी अपने ही पास
जब से खोई तुम्हारी दुनिया में, वहां से लौट के आना भूल गई

रविवार, 1 नवंबर 2009

राह दिखलाओ

ध्यान इक धुंद में कहीं कुछ खो गया है !
मन किसी गहरी नींद में ज्यों सो गया है !!

अरे, एक दीप इस घर में कोई तो जला दो !
मेरे सोए हुए मन को ज़रा झकझोर जगा दो !!

अमावस सा यह जीवन क्यों भला यह हो गया है !
ज्ञान मन का क्यों ह्रदय से दूर कही पर खो गया है !!

कोई तो दे के न्योता आज सूरज को जा लिवा लाओ !
खोए हुए ज्ञान को फिर मेरे घर राह दिखलाओ !!

सैलाब मैं कैसे धरोहर सब मेरी क्यों बह गई है !
और लकीरों में भी तो कुछ छिन गयी कुछ रह गयी है !!

कोई करो मेरे लिए कुछ दुआ कि सैलाब बाँधू !
और फिर संयम सहारा ऐसा बने कि मन को साधूँ !!

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

ना तेरे आने की खबर
ना जाने का सबब
दिल कांप उठा है सीने में
जब जब तेरी याद आती है

नए तेरे पाने की ख़ुशी
ना जुदाई का है गम
बस यूंही आन्हें भरा करें हम
जब जब अँधेरे चने लगते हैं

ना हो सके हम ही तेरे
ना ही तू हुआ हमारा
पर तेरा किस और का हो जाने
नहीं इस जिंदगी को गवारा

ना मंजिल है कोई
ना कोई हमराह -इ रकीबा
बस यूंही धारका करे गा
यह दीता उम्र आवारा

ना माय ना साकी ना मैखाना
लाबून तक पहुँचने से पहले ही
छलक गया मेरा पैमाना

बस इतना बता दे मुझे ना खुदा
क्या यही है नसीब मेरा
जलना और जलना बस
जाल जल के ख़ाक हो रहना

की अभी है कुछ बाकि
मेरे हिस्से की
तेरे मैखाने में मेरे खुदा

diwali

दूर से देखा जो सेहर अपना
लगा गगन जमी पर उतर आया है
मिलने को जमीं से

जिधर देखूं रात सजी है
दुल्हन सी
हर दिल टिमटिमा रहा है
रोशन हो प्यार में

ख़ुशी से हर घर महक रहा
हर आंगन जुटा है पूजा में

हर एह्लीज पर
ज्योति आमंत्रण की जगी है

मीठअ सा हो रहा है मन आज
सभी की रूह में मनो रागुले पफूट रहे हूँ

सज सवर्ण कर इंसानियत
मिल रही है गले इक दूजे के

तोफे मिअलं के
ले ले कर बैठे हें सभीi

कुछ ऐसा नजारा बन रहा है
मनो राम राज लौट आया हो आज

हर घर में ख़ुशी के दीप जले हैं
आज दीपावली आई खुशिओं भरी

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

काफी है

जिन्दा रहने के लिए काफी है

इक मुठी आसमान
ताजा हवा के झोंके
झरने का शीतल निर्मल जल
जिन्दा रहने के लिए काफी है

सर पर इक छापरी छोटी सी
इक चूल्हा इक हंडिया

इक थाली इक कटोरी इक गिलास
एक दो मुठ्ठी अनाज
पेट भरने के लिए काफी है


इक चटाई इक बिछोना
इक ओढनी इक तकिया
इक लोरी कुछ मीठे सपने
नींद लेने को काफी है

इस के अलावा जो है सब
इक भेड चाल है बस दिखावा
इक झूठा सच या डरावना ख्वाब
नही जिस के लिए कोई माफ़ी है

इंसान को इंसान होने के लिए
इक दिल दरिया , दया और ज़मीर
इक जेहन सूझवान
इक रूह प्यारी सी काफी है

इस देह के मनमन्दिर में
इक सिंहासन हो हरि का
ज्यों सोने चांदी का रत्न जडाऊ

इक मुकट इक हीरे जरी खडाऊं
जिस की करें पूजा और ध्यान
इबादत में झुका सर
समर्पित जीवन के लिए काफी है

सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

मीरा या माया ! दोनो सच !

एक मुखौटा औरों जैसा ...
छिपा है जिसमे चेहरा मेरा ...
आडंबर हैं आधा जीवन
और पाखण्डी मेरा मधुवन
मेरी श्रधा प्यार सभी कुछ
एक छलावा सा यह यौवन ...

ढोंग करूं मैं पूरा पूरा
सच को उघाडूं सदा अधूरा
माहिर हूँ मैं माया रच दूं
संतों का अस्तित्व मिटादूं

पर मेरा सच मेरे अंतर में
मुझ से मिलना हो जो घर में
चले आओ मन के इस तल में
ताला है इस किवाड- द्वार पर
विरला ही चल सके राह पर

यह मीरा का आमोदित घर है
दस्तक है उस पार ब्रह्म की
अन्दर है मंदिर की घंटी
अन्दर गिरजाघर की प्रेयर
और अजान सी टेर यही पर
गुरद्वारे की बानी गूंजे
पलक भीग गयी सुनते सुनते

इस दहलीज़ पर एक अभागन
खुद बहुतेरे रह जाती हूँ
ठिठके से पग रुक जाते हैं
दस्तक देने से पहले ही
लौट लौट फिर फिर आती है ..

मैं मीरा, मैं माया आधी
जगत मुखौटे में उलझी , बांधी
पूरा सच क्या है, सुलझा दो
प्रेम गीत गा मुझे सुला दो !

बुधवार, 30 सितंबर 2009

मेरा सपना

मेरा सपना

अम्बर से हर बूँद बटोरूं
प्रेम - ओस की प्यासी मैं
रुन झुन चलूं गगन मंडल में
बादल की करूं सवारी मैं !!

कतरा कतरा पंखुडियों का
भर अंजुली में इतराऊं
चन्दन सी काया बन जाउं
श्रृद्धा - गीत निरंतर गाऊं !!

प्रेम जगत के पथिक संग ले
प्रेम पंथ पर जल बरसाऊं
मैं मीरा बन नाचूं गाऊं
मै नदिया बन बहती जाऊं !!

मै बनूं वृक्ष और छाया दे दूं
थके हुए झुलसे हृदयों को
बनूं मरहम और जख्म मिटाऊं
गोद बनूं और रोग मिटाऊं !!


भूखे को भोजन बन जाऊं
बनूं सहारा मैं निर्बल का
सिद्धार्थ हृदय बन पीडा हर लूं
फिर मीरा बन नाचूं गाऊं !!

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हां तुम कुछ ऐसा ही करना

हां तुम कुछ ऐसा ही करना


हां कुछ ऐसा ही करना

अपने नैनों से

अपने कानों से

अपने स्पर्श से



मेरे अस्तित्व में

समाहित हो कर

मेरे भीतर बहकर . रहकर ..

अपनी दृष्टि दे कर मुझको

अपनी शक्ति देकर मुझको

बस जाओ यूं कि ...

हां कुछ ऐसा ही करना


होंठ मेरे हों गीत तुम्हारे

स्वर मेरे हों कंठ तुम्हारे

हर सिहरन, ज्यों तुम छूते हो

हर धडकन, ज्यों तुम बसते हो

बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

हां कुछ ऐसा ही करना





चेतन में अवचेतन में तुम

जाग्रत में हर सपने में तुम

इस युग में हर जन्मों में तुम

मेरे भीतर बहकर . रहकर ..

अपनी दृष्टि दे दो मुझको

अपनी शक्ति दे दो मुझको


फिर से दे दो मुझे वो शुचिता

स्वच्छ हो सकूं बनूं अमृता

कौमार्य मेरा फिर मुझ मे भर दो

सुहाग बनो तुम सांसे भर दो !

बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

चेतन से अवचेतन कर दो ...



बस जाओ तुम यूं मुझमे कि ...

हां तुम कुछ ऐसा ही करना

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- Show quoted text -

शनिवार, 12 सितंबर 2009

... तो कोई बात बने

... तो कोई बात बने


पन्नो पर बिखरे पड़े हैं शब्द मेरे यहाँ वहाँ
इन्हें समेट पाऊँ तो कोई बात बने

स्याही सी पहेली है हर सूं जैसे रात का अँधेरा
सहर हो जाने दो तो कोई बात बने

जुल्फों से उलझे उलझे से हैं जज्बात मेरे
इन्हें संवार लूं तो कोई बात बने

आवारा हवा से हुए जाते हैं ख्यालात
उन्हें लगाम दू जरा तो कोई बात बने

ख्वाब सो गये हैं अब गहरी एक नींद में
उन्हें जगा पाऊँ तो कोई बात बने

एहसास सभी उसके बिखरे पड़े हैं बून्दों से
सांसों की माला में उन्हे पिरो लूं तो कोई बात बने

मेरे दिल में छिपा बैठा है बस के कोई चाँद सा
उसे चान्दनी का बना पाऊँ तो कोई बात बने

आ खुद ही मुझ को ढूंढो मुझे सम्भालो
मैं घर को लौट पाऊँ तो कोई बात बने

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

लम्हा लम्हा पल पल छिन छिन

छिन छिन करते रहे तुम से प्यार
पल पल करते रहे बस इन्तजार

लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे


टिक टिक करती घडी इंतेज़ार की
देती रही पल पल मेरे सीने में जखम
जार जार रोता रहा एतबार का मंज़र
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम
लम्हा लम्हा जिंदगी यूहीं कहीं घटती रही
कतरा कतरा हम यूंहीं मरते रहे

थम थम वक़्त यूंही सरकता रहा
और हम, कदम दर कदम बढते रहे
जिन्दगी की रोशनी कहीं खोती रही
दम दम सिसकता सा सरकता रह गया यह दम
मर मर के जिये कैसे कोई तज़बीज़ दे मरहम

और तुम्हारी याद में घुटने सा लगा यह दम
छिन छिन मिलने वाली छिन गयी हर ख़ुशी
बूँद बूँद आंसू टपकते औ' सिसकते हम
सिसक सिसक यूं जिंदगी चलती रही


थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो
जरा जरा सा क्यों करो एतबार तुम
भरा भरा है प्यार तो तुम मिल तो लो
थमी थमी सी जिंदगी पल पल गुज़र ही जायेगी
बहने लगेगी प्रीत , प्रीतम मिल तो लो

थम थम के भी तो देख लो पल भर जरा
रुक रुक के दीदार दिल का कर तो लो

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

चांद सलोना प्रीतम जैसा

भूखे की रोटी सा चांद
प्रेमी की महबूबा जैसा
राही का हमराही बनकर
साथ निभाता राह बताता

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

सूरज के घर भिक्षु बनकर
सन्यासी सा वह ज्योत मांगता
बदली संग रास रचाता
नभ में मोहक चित्र बनाता ..

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

दादी नानी का प्यारा चन्दा
कथा कहानी में छा जाता
बचपन में मामा सा प्यारा
अब, प्रेमी सा रूप बनाता

चांद सलोना प्रीतम जैसा
मेरा मन निस दिन हर जाता

प्रीतम प्यारे तुम भी आओ
चन्दा बन मन में बस जाओ
अठखेली कर न तरसाओ
बन के चान्दनी ही छा जाओ

रविवार, 6 सितंबर 2009

अभिनन्दन

अभिनन्दन


सुबह सुबह की महकती हवा
नए जन्मे बच्चे सी ताज़ा
ज्यों धीमे धीमे आँख खोलती
पंख फैलाए चिडिया के नन्हे बच्चे सी
नयी कोपल सी कोमल महकती गुनगुनाती हवा ...


खिली हंसी सी खिली खिली सी धूप घर के आंगन में मीठी मीठी सी धूप
मौसम की शीतलता का पैगाम लाती गुनगुनी लुभावनी धूप ......


चहकती चिडियां
आँगन में रंग बिरंगी फूलों सी बिखरी
पांव पाव फुदकती दाना चुगती चिडिया... संदेसा देती खुले मौसम का ... सुहाने दिनों का ...


नन्हे नन्हे पैरों से भागती फिरती गिलहरियां
कभी कभार बेझिझक बेहिचक से हिरन...
चुपचाप चरते बिचरते आ जाते हैं घर के पिछवाडे में...
लगने लगता है बहार है यहीं कहीं करीब ही
देते हुये एक मुस्कान सी हर दिल में
एक उम्मीद सी हर नजर में
एक होंसला सा हर रूह में

हर दृश्य एक खबर है.. खुशी की खबर
ज्यों आकाशवाणी कर दी हो किसी ने
मन के गुलशन में इन्द्रधनुष छा जाने की
महक उठी हों जीवन की सांसें बागों के फूलों सी जग के रचनाकार ने करवट बदली है ...

नए मौसम का अभिनन्दन है

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मन्नत

प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !

पेडों पर मन्नत की झंडियां
टूटते तारे से दुआएं .. मनौतियां ..
पलक के गिरे बालों से कभी
मन्दिर में घंटियां बांध कर कभी
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !

तेरे द्वार नंगे पैरों से सफर तीरथ को जान ..
कभी मंगल का लंघन तो कभी शनि का दान ...
तेरी मन्नत के लिये रोज़े रमज़ान ...
शमा गिरजे मे रोज़ रोज़ तेरे ही नाम...
की है जो मन्नतें
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !

जैसी भी हो मन्नतें आधी अधूरी
तू ही प्रभू है तुझे ही करना है पूरी
मन खरीद ले तू ही मेरा ..
पूरा कर दे इस बाज़ार का दस्तूर
बिक जाऊं तेरे लिए ए मेरे प्रभु...
प्रभु मेरे मन की मन्नत सुन ले !

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कौन हूँ में

कौन हूँ मैं ?
धरा हूँ , अस्तित्वहीन ..
या कि, भाव हूँ निराधार ..
विचार हूँ कोई अलिखित सा शायद ...
जिसे जेहन की स्लेट पर न उतारा गया हो अभी ..

माया हूँ या माया का अंश !
भूली भटकी हवा हूँ
बिन राह के मुसाफिर की मानिन्द
या फिर खंडहर हूँ किसी कालातीत ऐश्वर्य का ..

जहां दिखा खुला आसमान सा मन
बस उसी की हो रहती हूँ ...
जहां खीच दे कोई लकीर बह निकलती हूँ उसी और
रस धार बन कर नदी की मानिन्द ..

बरस जाती हूँ जहां कहीं होती है चाह रस की ...
न वजूद है कोई न अस्तित्व न हीं आकार मेरा
माया हूँ या माया का अंश !

ऐ मेरे मसीहा
दिखा दो राह बन जाओ ज्योति
मेरे मन की नैनों की
ले चलो उस पार
जिसे किनारा कहते हैं सब
जहां भर ले कोई अंजुली में मेरे प्रेम को
हो जाऊं धूल से फूल
अर्पण हो रहूँ चरणों में तेरे
तो मुक्ति पाऊँ होने से माया के
इस रूप से ...

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

कैसी है जिंदगी
इक अजूबा है
जब हम हार बैठते हैं
तो कोई कहीं से तिनका मात्र
आ बन जाता है जीवन का सहारा
हाँ नजर चाहिए
उस तिनके को
उस मोके तो प्र्ह्चान्ने के लिएय
ख्वाब सब पुरे होने लगते हैं
सब और हरियाली फेल जाती हेई
खुस्बूएं हर सु मनो बहार
जीवन में आ जाती है
जिंदगी नए सिरे इ जीने को मन होने लगता है
यह मन भी कितना बांवरा
होता है
जो कल थक अपना हो पल में पराया हो जाता है
लाख मानाने पर भी लौट कर नहीं आता
रहता है किसी से संग
साथ निभाता है
पर सिर्फ टीबी तक जब तक
मिलता रहता है
प्यार
जीवन टिका है प्यार की बुनियाद पर
जो जितनी नाजुक उतनी ही मजबूत भी होती है
जिसे दुनिया की कोई ताकत नहीं तोरे सकती और गर टूट जय तो तो कोई जोरे नहीं सकती
प्यार धेरून
पर्बतून समन्द्रून
आकाशून
धरती
सब नक्श्त्रून से भी बढ़ कर मले आप को
मेरी तरफ से
सिर्फ इक कविता के बदले

बेच दे मन

पसरे सुबह बन कर
चले हवा हो कर
बहे तो गंगा सागर हो कर

चमके तो चांदनी सा
फैले हर सू खुसबू सा

दुल्रारे गोदी सा भूम हो
भरे पेट बन्स्पत हो
आलिंगन में ले ले कुदरत हो

सर पर छत सा गगन वोह
रोशन हो धुप सा वोह

तो कहाँ

छिप छिपा सके है एह इंसान तू
उस की नजर की ज्योत है चारूं और

आ शरण पा आर्शीवाद
कर दे तेरे सरे गुनाह मुआफ
मिल के इक से इक हो रह

झुका दे सर बेच दे मन परभू के पास

बुधवार, 12 अगस्त 2009

मेरे मालिक

कची नींद में करवट बदलते ही
एहसास जग जाएं तो मालूम होता है
मेरे मालिक का हाथ है सर पर मेरे

आँख खोल देख पाती हूँ
गर झरोखून से उस पार
जहां रहता है मेरा प्रीतम प्यारा

समझ जाती हूँ
नहीं मेरे भीतर ही है
यहीं है मेरे आस पास

दिन भर की हर मुस्कान
है उसी का आशीर्वाद

झाँक झाँक मेरी आन्खून से
देखे सब संसार
फिर कहे हौले से मेरे कानो में
कर प्यार प्यार कर

हर सु मैं ही हूँ बिखरा हुआ
कण कण हूँ मैं ही बसा हुआ
मेरा ही रूप है तू भी

कर ले खुद से भी प्यार
बस प्यार ही प्यार
गली के कोने पर जहां छोर कर आई थी
आज भी वही देख पाती हूँ
आप की उदास आँखें रुकी हुई
आप मेरे मुड के देखने का इन्तजार करते रहे
पर नहीं जाना
की आज भी मेरे पीठ पर गहरे निशाँ हैं उन
गडी गडी नजरूं के
में मजबूर हूँ सामने देखने के लिएय
पर पीछे क्या है जानती हूँ खूब
उसी दुनिया किहूँ में आज भी
मुख सामने है पर दिल वही
सड़क के किनारे उसी मोड़ पर छोर आई थी
जाओ लाओ ना
दिल मेरा संभाल लो
मेरी खातिर

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

कितनी अकेली बेचारी रात ..

सांझ होते ही
सूरज के ढलते ही
रात भागती फिरती है
गली गली
कूचा कूचा नापती
कभी इस और तो कभी उस चोर
नदी किनारे
सागर की लहरों के पीछे
कभी चढ़ जाती पहाड़ पर

कभी छिप जाती पैडों तले
भागती लुक छिप जाने कहाँ कहाँ
यहाँ वहां कहाँ कहाँ
इधर से उधर तक
तो कभी उधर से इधर तक
सर पटकती रोती बिलखती
ना कोई साथी
ना कोई सहारा
कोई ना कहे आना दोबारा
कितनी अकेली बेचारी रात ..


संग चले अंधियारा
कभी तारों से कहती

कभी चंदा से मिन्नतें करती
पर यूंही दौड्ती भागती सी रात ..


धीमे से खसकती जाती
आज की रात पलभर में
कल सुबह की बाहो में
यूं ही छिपती जाती
खिसकती खिसकती आज की रात ...


पल में होगी कल की सुबह
रात आज की रह जाओ मेरे पास
आज की रात मेरे हो जाओ...

रविवार, 2 अगस्त 2009

तुम कब आओगे

नयनों के दीपक जला,
कर पलकों की ओट
छुपाए पावन झकोरों से
प्रीत प्यार की ज्योत

ठहरी है धड़कन मन की
यही कहीं देहलीज़ पर
कब आओ गे प्रीतम प्यारे
तुम मन की देहलीज़ पर

बुझ ना जाए आस मेरी
यही है डर मुझको भारी
पलक झकोरे खोले बैठी
इंतज़ार में मैं बेचारी
सो ना जाए धड़कन मेरी
कब आओगे क्या है देरी

हवा में खोजूं महक तुम्हारी
फिजां में बसी हो सांस तुम्हारी
आस तुम्हारी साँसें मेरी
हर आहट पर आसें मेरी
हर साया, कि ज्यों तुम तुम आए
कब आओगे क्या है देरी
कब आओगे क्या है देरी

शनिवार, 18 जुलाई 2009

आपके नाम

थामा जो आपने हाथ
लगा बचपन से है साथ

एक बहती धारा हूँ
जिसे थामा इक मौज ने
आओ दोनों मिलके बह चलें
उस सागर की ओर
जिसका न कोई ओर ना छोर

थामा जो हाथ फिर
साथ न छोडेंगे
चलते चलते साथ फिर
साथ ना छोडेंगे

ये वादा है तुमसे
ज्यूं ज्योति संग ज्योत जले
मिले सागर से
हो सागर जैसे

मैं मैं ना रहूँ
तू तू ना रहे
मुझसे मैं
तुझसे तू खो जाये
तुझमे मैं खो जाऊं

आ मिल आलिंगन में
कुछ ऐसे दोनों खो जायें
कुछ ऐसे

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

पंख लगालूँ ख्वाबों के
उड़ती जाऊं दूर गगन में
इस डाली से उस डाली
ठुमुक ठुमुक कर पाँव पाँव भी
कभी पेड़ तो कभी छाँव भी

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

भेद नहीं घर में आँगन में
उजडे खँडहर बसे महल में
भेद नहीं जंगल खेतों में
घर के आगे , पिछवाडों में
मुन्ना गुडिया खेल खेलते
मैं भी अपना मीत ढूँढती

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

चहकूं बीच घने जंगल में
कुहकूं बीच हरे खेतों में
आये बुढापा या यौवन हो
मदमाता पन हो रातों में

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

चोंच प्रेम की तिनका चुनती
पल पल यादों के आँगन में
इक इक धड़कन बीन बीन कर
सदा निरंतर सपने बुनती
मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर
बड़े जतन से ठियाँ सजाती
मौसम चाहे जो हो लेकिन
प्रेम मगन हो बस इठलाती

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

आशाओं का घने पेड पर
मन का एक घरोंदा है
मन के मीत की उम्मीद लिए ही
तिनका तिनका जोड़ा है

मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

मीत मिल गया
प्रीत सज गई
गीत बज गया
रीत चल गयी

प्रेम मगन हूँ शब्द चुक गए
प्रेम पुजारन कहीं खो गयी
बचे कहाँ तुम बची कहाँ मैं ?
दोनों मिल कर एक हो गए
मैं चिडिया एक प्रेम पुजारन !!

सोमवार, 13 जुलाई 2009

गुनहगार

सूने नयनों के कौरों से,
देखे हैं टपकते सपने मैंने
चाहा तो था कि दौड़ कर चूम लूं
पलकों पे सजा लूं अपनी
थाम लूं लबों से,
अपना बना लूं , तेरे सपनों को

इस से पहले कि ये सपने
नसीब के हाथ से छूटे , टूटे और बिखर जाए ..
इन्हें नींदे मिलें , मंजिल मिले..
कि इसी कोशिश में समेट लूँ सारे गम भी तेरे ...
यह दिल है कि उधेड़ता बुनता रहता है तमन्नाएँ , हसरतें
कि तेरे साथ हो शुरू फिर एक कहानी प्रीत की
और फिर से , मचलने लगे दिल
हो फिर से धड़कनों में हरारत
दिल फिर से करे बातें तेरी रात रात भर ...
मैंने अपनी मुस्कानों में से
कुछ मुस्काने संजोई हैं जीने के लिए तेरे खातिर...
कुछ साँसे भी माँगी हैं सीने के लिए तेरे खातिर ...

अफ़सोस !
किस्मत बड़ी है और बहुत छोटे हैं मेरे हाथ
अंजुली भर ना पाई खुशियाँ का साथ
खोखली खुशियाँ सूनी मुस्काने
अधूरी कहानी फीकी प्रीत
अँधेरी रातें खाली हाथ....
मैं संभाल न पाई तेरे सपने की सौगात ....
आज भी हैं सपने मुझ पर उधार है तेरे
मुझे माफ़ करना मेरे मन मीत
कि गुनहगार हूँ मैं तेरी

बुधवार, 8 जुलाई 2009

seep ka moti

बचपन की इक भली सी याद
आज भी है मेरे पास
छुपा के रखी है नज़रों से दुनिया की
की लग ना जाई नजर दुनिया की
बचपन की मीठी सी याद
जब सपने मेरे
तुम देखा करते थे मेरी आन्खून में
हाथ थाम कर ले जाते
दूर बहुत दूर मुझे मेरे ही ख्वाबो की दुनिया में

जवान हों सपने इस से पहले
पहचाने चेहरा तुम्हारा उस से पहले
छोर मेरे सपनो का साथ
रहने चल दिए तुम किसी और के सपनो के साथ

बरसों झाँका हर नजर में
ढूँढती रही सपनो को अपने
खोजा तुम को हर रोज़ नींदों में
गली गली रातों की छानी

हर अनजाने को समझा तुम हो
हर कागज़ के टुकरे को समझा ख़त तुम्हारा
हर पते को समझा पता तुहारा
ना नाम ना निशाँ ना कोई ख़त ही मिला तुम्हारा

अधूरी थी कोशिशें मेरी
तभी ना हो पाईं पूरी
भूल गई मैं हार गई मैं
थाम लिया सच का दामन
मान लिया तुम ना आओगे

बंदकर सपनों को काले बक्से में
कर दिया जुदा हो गई बिदा
चली दी ससुराल हुई बेहाल

भूली बचपन के सपने
मिलगे सब मेरे अपने
यूंही जीती रही ले खाली खाली रातें
बिन सपनो के मिली बच्चों की सौगातें

फिर इक दिन यूंही सदियों बाद
लो आई फिर तेरी याद
कानो ने सुनली दिल की पुकार
देखी सूरत जानी पहचानी
सुनी कहानी सुनी सुनाई

घबराई सी बहकी बहकी बात
आ कर थामे मेरे हाथ
जागने लगे मेरे बचपन के खाब
सपने सभी लौट आये आज

बहार निकली फिर अपने सीप से
बनने को मोती
मचला मन बहुत कोशिश की
काश में उन की होती

पलक झपकते टुटा सपना
वोह ना था कोई अपना
आज फिर मेने देखा वोह सपना
जो कभी ना हो पाया अपना

रह गई अपना सा मुह ले कर
बंद हो गई में फिर सीप में
बस गई सीप को अपना घर कर
सो गई में फिर रो रो कर

काश में ना होती सीप का मोती
काश में तुम्हारी होती
फिर ना कभी में यूं रोती
रात भर में उस सपने के संग सोती

सोमवार, 6 जुलाई 2009

पंख पसारे भोली चिडिया !

पंख पसारे भोली चिडिया !

सोचा तो ये था !
कि सफ़र करते करते उम्रभर ..
जन्मो के सफ़र तय करेंगे ..

मिला जो भी उसे भी साथ ले लिया
कि सफ़र हसीं हो गया
जो छोड़ गए साथ
पर उन को पीछे नहीं छोड़ सके...


ऐसे ही इक दिन
सफ़र के किसी पडाव पर
इक जाना पहचाना सेहर
बचपन का जवानी का सेहर
जो गुजरा नज़र से
जुटा के हिम्मतें बचपन के प्यार की
आँखों में सजा कर सपने पुराने
सब दूरियों से दूर ..


सदियों के फासले पल में तय कर गए
आ गए मेरे मन के घर -आँगन में
जहां आज भी किसी कोने में पड़े थे
सपने बचपन से
कुछ सहमे से इन्तजार में किसी के
उन पर ढल चुकी थी किसी और के हक़ की छाया
जिसे पलकों से अपनी, आपने उघाडा
फिर धो के प्यार के आंसुओं से
और सपने नए से सजाए आप ने
थामा हाथ और ले चले मेले में
बह निकली झरने सी प्यार की निर्झरनी
बैठा के दिल की छाया में
सिखा दिया जीना और प्यार करना


अब उड़ने चेह्काने लगी जो चिडिया
पंख क़तर दिए सैयाद ने
डाला सोने के पिन्जरेमें
और उड़ा ले गया सात समंदर पार
बहुत दूर
इक पत्थरों की दुनिया में
जहां ना मित्र ना प्यार
न प्रीत का संसार


तभी
एक दिन आया कोई मुसाफिर
अनजाने में खोल दिया पिंजरा दिल का
और पंख पसारे फुर हुई चिडिया
जा बैठी सात समंदर पार
फिर उसी दिल के घरोंदे की मुंडेर पर ....

ek dua

क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नयनों में
जो पा सकें दरस तेरा

है जो तू हर सू बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगों में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को

ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करूं अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक

दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम

बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवन भर की कड़वाहट ढोंग और नफरतों से
कैसे पड़े तेरी पाक कृपा की नज़र मुझ नाचीज़ पर मेरे हरी

लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्नतें में करूं तुझ से
आँखों में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा प्रभू मेरे

दे दो वो नजर जो दीदार करूं तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे अपनाए
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
माँज डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से

करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरि से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ

बस यही है दुआ मेरे हरि

bhram

रिशवतें देतें हैं हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
ढूँढ़ते हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिझाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हरियालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सू है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किन्तु लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलों के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठते ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गल्तियों का पुतला
अपने लिए तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + दमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझसे
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ सृष्टी तेरी
तू ही है कायनात सारी
सोचूँ महसूस करूं
हर कण में तुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हें हम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

intjaar

खामोशियाँ छाई रही यूंही बरसों
मदहोश से पड़े रहे जज़्बात मैखाने के किसी कोने में
ढूँढती रहीं मेरी चुप्पियाँ किसी को
दिल मेरा भटका गली गली
भीढ़ में हर चेहरा लगा तेरा ही चेहरा
आवारा सी हो घूमती रही सोच मेरी
मेले में मैं रही अकेली
एक उंगली जो थामी थी बचपन ने कभी
आज बूढी हुई उंगलियाँ
खोजती फिर रही हैं उन्ही स्पर्शों को
शून्य सा हो वक़्त भी चलता रहा थम थम कर
थम गई जिंदगी सदियों पहले से
भागते फिरे जुगनुओं की पीछे रात भर
आवारा ख़्वाबों को बाँध बाढ़ रखते रहे
जिंदगी टंगी रहगी रही दरख्तों पर कटी पतंग सी
आज भी है
इन्तजार इन बुझी बुझी आँखों में

hi raam

घुप अँधेरा
काली स्याह रात अमावास की
चमकती बिजलियाँ
गरजते बादल
बड़ी भयानक रात है
यह जिंदगी

अद्भुत अनोखी
चाँद बादलों में मुँह छिपाए है डर से
तारे भी सब खो गए

घनघोर जंगल है सब ओर
वीराने सन्नाटे खामोशी है सब ओर
फिर भी
अकेले नहीं हैं हम
भीड़ हैं यहाँ
मेला लगा है
मजमें हैं सब और
कहीं नाग सरसराते हैं
तो कहीं उल्लू पुकार कर रहे
कभी सुनती हैं चमगादडों के फड फडाने
की आवाजें
कहीं कहीं से कोई पक्षी भी गलती से चहचहा उठते हैं
यूं तो जुगनू हैं कहीं कहीं
दिल बहलाने को
घबरा के हम एकेले से
ढूँढ़ते फिरते हैं कोई सहारा
पास है इक लाठी सुरक्षा के लिये
बस एक मात्र सहारा
उस का
यूं ही गुजरती रात सी इस जिंदगी में
जब कोई ठोकर लग जाए अचानक
मुख से निकले हे राम
तो इक बिजली सी कौंध जाए हर सू
गूँज जाए इक नाम
हे राम
भागे चले आयें सब चाँद तारे
बादल छत गे डर कर
नई उम्मीदों की किरने आ गिरी झोली में
इक ज्योति छू गई इन बंद आँखों के दीयों में
फैल गया परकाश हर सू
वोह गयी लाठी
खो गए अँधेरे जीवन के
जो थामा हाथ खुद
राम ने
मेरे और कर लिया इस भव सागर से पार
हे राम

ishq

लैला मजनू का ज़माना भी क्या खूब था
हीर रांझा की दुनिया भी निराली थी
इन के इश्क ने कर दिया था जमाना दुश्मन
मुलाकातें थी कितनी अधूरी
मिल ना पाए वोह जिंदगी पूरी
पर आज भी दुनिया किस्से सुनती सुनाती है
की मोहब्बतें थी तो उनकी ही थी पूरी
बचपन का हुआ प्यार
मरते दम तक निभाया
वादा इश्क का मर के भी निभाया
और आज का इश्क
आज भी है बच्चे बच्चे को है
हो जाता है पहली नजर में ही
सेटे लाईट का ज़माना जो है
सब होता है बड़ी रफ़्तार से
ना नज़रों का मिलने
ना वो हिरन ना कबूतर
ना कोई चिठ्ठी ना पत्र
ना डाकिया ना दूत कोई
पल भर में ही
इन्टरनेट पर ही
बिन देखे बिन सुने बिन मिले
एक्सप्रेस मेल की रफ़्तार से होता है इश्क भी
पल में जीने मरने के वादे
पल भर में जन्मों के बंधन
कभी ना बिछड़ने की कसमें
पर जितनी जल्दी यह इश्क की गुड्डी चढ़ती है आकाश में
उतनी ही जल्दी कट के
फड फडाती लडखडाती
कभी इस पेड़ पर तो कभी उस छत पर टंगी मिलती हैं
जो कल हुआ इश्क वोह आज हवा हो गया
और शायद आज नया किसी और से होने को है तैयार
यह इश्क नहीं नज़रों का धोका है
दिल बहलाने को लेकिन ख्याल अच्छा है

soch

कुछ सोच में पड़ गए हैं ख्वाब मेरे
कैसे दे पाऊँगी साथ
कयूं कर चल पाएंगे उन राहों पर
की जज्बात तुम्हारे
ख्वाब भावनाएं सब के सब
हैं सागर से गहर गंभीर
जब से जज्बातों ने मेरी
थामी है उंगली तेरे गंभीर जहन की
कदम कदम चलने की कोशिश कर रहे हैं
गिरते पड़ते
लडखडाते नयी राहों पर
चल पड़े हैं खोजने माजिलें नई
गर बना रहे यूं ही साथ हमारा
थामे रहो तुम हाथ हमारा
तो शायद हो रहेगी सर मंजिलें अपनी
आज जो दिल की जमीन
नहीं पहचानती इन हलके ख्यालों के कदमो को
आज जो सुनाई नहीं देती आवाज इन खोखले ख़्वाबों की
कल जब यूंही साथ साथ चलते हो रहूँगी में तुमसी
ये ही पाँव भारी हो जाएं गे
अपने कुछ नक्श छोड़ जाएंगे
कल आने वाली पीढी फिर इन्ही नक्शे क़दमों पे चल
कर लेंगे मंजिलें सर
जो हम ने किये सफ़र तय
वोह मंजिलें हमारी औलादें पा जाएंगी
जो सफ़र रहगे हमारे अधूरे
वोह करेंगे हमारे बच्चे पूरे
तो शायद होंगे हमारे अधूरे ख्वाब पूरे

churiyaan

चूडियाँ
रंग बिरंगीइंदर धन्नुष सी चूड़ियाँ
लाल हरी नीली पिलीसब रंगून की चूद्रियाँ
माँ बहन पत्नी बेटी भी पहने चूड़ियाँ
मौसो चची भुआ दादी नानीमामी ने भी पहनी चुरियाँ
लाल हरी नीली पिली चुरियाँ


कांच की लाख की स्टील की रबड़ की
सोनेकी चांदी की चूड़ियाँ
घुंगरू वाली वाली नाग्गून जडी नगीने जडी
हर औरत का सिंगार करें हरी भरी चूड़ियाँ


हर अवसर पर पहनी जाएं चूड़ियाँ
लक्ष्मी जो जन्मी पहनाएं काली चूड़ियाँ

नजर न लगे कहीं मेरी दुलारी की चूड़ियाँ
पहने नन्हे हाथ कभी चांदी की सोने की
घुंगरू वाली चूड़ियाँ

रोंनं झुन करती कभी खनकती ी
घर की रौनक चूड़ियाँ

पीले हो जाएं हाथ जो तो पहने
लाल चूडा लाल हरी चूड़ियाँ
सुहागन पहने लाल हरी नीली पिली नीली चूड़ियाँ
माथे टीका नाक में नथनी पायल कुमकुम तगरी झुमके
अन्गोठी कजरा गजरा सब हैं निभाते साथ हैं ऐसी हैं यह चूड़ियाँ
यह सुहागन की चूड़ियाँ

ये सहेली सभीकी लाल हरी नीली पिली
सोने चांदी की कांच की चूड़ियाँ

मैं भी पहनू तुम भी पहन हम सब पहने
यह प्यारी चूड़ियाँ
जीवन भर यह साथ निभाएं पर जब कोई अपना छोरे जाए साथ
टूट टूट जाएं चूड़ियाँ

सगे सम्बन्धी सखी सहेली
मिल कर सभी तोड़ डाले चूड़ियाँ
फिर न सजें ना भाएं
उसी कलाई में वही
लाल हरी नीली पिली चूड़ियाँ

सुख के दुःख की कथा सुनें यह रंगीली चूड़ियाँ
बचपन में खिलौने टूटी फूटी चूडिआं
सुहागन के दिल के तुक्रे यह रंगीली चूडिआं
विधवा की दुःख भरी कहानी यह निगोरी चूड़ियाँ
हाय
कितनी प्यारी हुआ करती यह चूड़ियाँ
अब न भाएं यह सारी चूड़ियाँ

हर औरत का गहनाहर कुंवारी का सपना
हर बच्ची का शौंक हर अल्हड का सजना सजाना चूडिआं

कितनी प्यारी बहुत सारी मन को भाएं कलाई मेंसज जाएं
लाल हरी नीली पिली यह सारी चूडिआं

रविवार, 5 जुलाई 2009

aati to gi yaad meri

जानती हूँ मेरे चले जाने के बाद
मुझ से बिछ्र के जाने के बाद
तुम्हें भीमेरी तरह मेरी याद तो बहुत आती होगी
जब जब बस अड्डे से गुजरते होगे
मेरी याद तो जरूर आती होगी
जब भी घर की देहलीज से कोई लौट लौट जाता होगा
उस में भी मेरी ही परछाई दिखाई देती होगी
कभी जब लम्बी ड्राइव पर अकेले जाते होगे
फ्रंट सीट का खाली पन अखरता होगा
और तब तो मेरी याद अवश्य ही आती होगी
जब जब एकेले बैठ चाएय के कप पे कप पीते होगे
तो कोई साथ दे उस के लिएय ही सही
मेरी याद तो फिर भी आती ही होगी
जब भी कोई करता होगा शिकवा शिकायत
मेरी याद दिलाता तोहोगा
लडू चाहे किसी से लड़ाई मेरी भी याद आती तो होगी
जब जब किताब पड़ने को बैठे होगे
उन में पड़े सूखे पत्ते याद मेरी दिलाते ही होंगे
उस काले बक्से से जब जब पुराने ख़त निकल पड़ते होगे
मेरी याद मुमकिन है सताती तो होगी
हर रोज़ जब निकालते हो चदर की सिलवटें
तो याद मेरी है जो तुम से लिपट लिपट जाती होगी
जब जब फ़ोन की घंटी बजती होगी
तुम्हें लगता तो होगा की मेरी ही कॉल होगी
रोज़ कोम्प्पुटर ऑन करते ही मेरे सन्देश ना पा कर
मेरी बहुत याद आती होगी
हर छूती के दिन इन्तजार करते होगी जब मेरे
में नहीं आती तो मेरी याद तुम्हें बहुत सताती तो होगी ना
इक बार जो बुला लोगे प्यार से में लौट आऊंगी
में गया वक़्त नहीं की फिर आ ना सकूं
बस एक बार आवाज दे कर तो देखो
लो में तो आ भी गई

achetan mein

क्षितिज के उस पार
कहाँ क्षमता है इन ज्योति हीन नैय्नूं में
जो पा सकें दरस तेरा

है जो तो हर सु बसा
कहाँ हैं वोह सपर्श इन जड़ अंगून में
की छूं कर महसूस कर सकें अपने प्रभु को

ऐसी श्रवन शक्ति नहीं की तेरे उपदेश सुन
समझ उन पर करून अमल तो हो पाऊँ तेरे करीब मेरे मालिक

दिल के आँगन में है भीड़ भाड़ इतनी
की हर समय मजमा लगा है
झूठ ईर्षा द्वेष क्रोध का
तो कहाँ बिठाऊँ तुझे मेरे प्रियतम

बर्तन भी मेरी रूह का है कसैला
जीवान भर की कड़वाहट दोंग और नाफ्रातून से
कैसे पड़े तेरी पाक किरपा की नज़र मुझ ना चीज़ पर मेरे हरी

लो हाथ उठा करती हूँ दुआ
झोली फैला मिन्तें में करून तुझ से
आन्खून में हैं आंसू शारदा के बैराग के
करो कृपा परभू मेरे

देदो वोह नजर जो दीदार करून तेरा
वोह श्रवन जो सुन के तुझे उपनाएं
हो जाए यह दिल वीराना जगत से
मांझ डालो मेरे रूह के बर्तन को
की अंजुली भर लूं तेरी कृपा से

करदो अनाथ की पा सकूं नाथों के नाथ को
फिर मिल हरी से हरी से मिल अलोप अलोक हो हरी ही हो रहूँ

बस यही है दुआ मेरे हरी

tum ho to

रिशवतें देतेंहें हम रोज़ सुभ सवेरे
चडते सूर्य को कर प्रणाम
आते ही रात पूर्णिमा की
पहुँच जाते हैं सिफारिशें ले कर
मंगल हो या शनि
या की फिर हो गुरुवार
दूंध्तें हैं बहाने
तेरे व्रत रख रख तुझे रिजाने को
धुप बती दिया जलाएं
आरती उतारें घंटियाँ बजाएं तुझे जगाने को
सब करें तब तक जब तक है
सुख ख़ुशी हंसी ठहाके
बरसातें बहारें हर्यालियाँ जीवन में
होती रहे मुरादें पूरी
भरी रहे झोलियाँ सब की
तो माने भी तू है
हर सु है मान लें ऐलान कर दें
पर गर किनतू लेकिन
घटाओं के छाते ही
घाव कोई लगते ही
अमावास के आते ही
फूलूँ के मुरझाते ही
तपिश लगने से पहले ही
प्यारे की जुदाई का सुनते ही
लक्ष्मी के रूठे ही
सोच लेते हैं
मान लेते हैं
झट पट इल्जाम्देते हैं
फैसला सुनते हैं
तू है ही नहीं
होता तो यूं न होता

रोज़ पूजा का यह सिला मिला
भ्रम है भ्रम सिर्फ भ्रम

वोह नहीं है
होता तो दिखाई देता
ऐसा कयूं करता
है ही नहीं
नहीं ............................

झूठ बोली में
इंसान हूँ ना
है इंसान गलतियूं का पुतला
अपने लिएय तो बहाना है ना
लिखने में गलती हुई
भ्रम नहीं ब्रह्म है
हाँ है
वोही है
वो है तो हम हैं
सब हैं
आदमी
आ + डमी
दम आए तो आदमी
दम है ब्रह्म से
तुझ से
तू है तो हम हैं आदमी
तू है तो में बोलूँ
कहूं सुन पाऊँ कुछ लिख पाऊँ
देख पाऊँ श्रृष्टि तेरी
तू ही है कायनात साड़ी
सोचूँ महसूस करून
हर कर्ण मेंतुझे ही पाऊँ
हम सब में बसता तू ही
फिर भी हम भरमे हैं
भ्रम में हेंहुम सभी
सब झूठ है
बस एक तू है सच
तू ब्रह्म
है
भ्रम नहीं

rail ki dopatriyaan

rail ki do patriyaan

aamne saamne rehte bhi
milti naheen kabhi
door bahut door
aabhaas hota hai unke milne ka
par kahaan mil pati hein taa umar


par humyoon to juda naheen hein
hum mile thei bichharne ko
he shaayad aur shukar hai na malki ka
kiaaj bhi hein to aamne saane
bhale hi milte naheen
milte hein kabhi kabhi

bhale hi milte hein
jub koi tisri patri
aa kar humein jore deti hai
hum jure hein

humari soch
humara ateet
humari udaan
humare nek irade
humare wishwaas
bharose humare
humare sukh
humari khushiyaan
woh bachpan ki sharartein
woh ma ki maar
woh jhule se girna
woh choti choti sanjhein
woh lardna jhagarna
woh pyaar
woh sehme sehmein hum
wih raaz woh beeteen batein
woh mil ke rona woh bicharna
woh hasna
aur phir se woh pyar
yeh sub jore hai hum ko tum ko
phir bahle hi na milein
woh rail ki do partiyaan



hum hein to saath
aamnei saamne
maano thame hoon haath
umar bhar ke liey
ek patri kabhi
doosri ko peeche
ekele naheen chorti
rakhti hai saath

woh rail ki do patriyaan

शनिवार, 4 जुलाई 2009

parchai

खामोशियाँ छाई रही यूंही बरसून
मदहोश से परे रहे जज्बात मैखाने के किसी कोने में
ढूँढती रहीं मेरी चुपियाँ किसी को
दिल मेरा भटका गली गली
भीरुं में हर चेहरा लगा तेरा ही चेहरा
आवारा सी हो घोमती रही सोच मेरी
मेले में में रहइ अकेली
एक अनगुली जो थामी थी बचपन ने कभी
आज बूदी हुई उंगलियाँ
खोजती फिर रही हैं उन्ही स्पर्शून को
शून्य सा हो वक़्त भी चलता रहा थम थम कर
थम गई जिंदगी सदियूं पहलेसे
भागते फिरे जुगनुओं की पीछे रात भर
आवारा ख्वाबउन को बाँध बाढ़ रखते रहे
जिंदगी तंगी रहगी रही दर्खून पर कटी पतंग सी
आज भी है
इन्तजार इन बुझी बुझी आन्खून में

बुधवार, 24 जून 2009

- Show quoted text -

kabhi kabhi

कभी कभी मन करता है ...

कैसा रिश्ता है यह मेरे तेरे बीच कि
समझ पाऊँ मैं न इसे न तुझे ...

कभी कभी मन करता है ...

कि आइना बनू मैं तेरा
और नहला दूं तुझे प्यार भरे आंसुओं के गुन गुने जल से
बना के पलकों का तौलिया पौंछ दूं बदन तेरा
पहनाऊँ स्पर्शों के वस्त्र अपनी नरम अँगुलियों से
कभी कभी मन करता है ...

प्रीत के आभूषणों से सजाऊँ तुझे
तू सज जाए क्षमा दया सहिष्णुता से
सुशोभित करूँ श्रद्धा का ताज,
मान सम्मान से माथे पर तेरे
बैठा कर दिल के सिंहासन पर
देदूं सारा राज पाट मेरे जीवन का तुझे
कभी कभी मन करता है ...

संभाले बाग़ डोर मेरे सांसों की तू
देदूं कुंजियाँ अपनी भावनाओं की तिजोरी की तूझे...
बन माँ बहिन बेटी सखी या प्रियतमा तेरी
जी भर प्यार परोसूं हर पल थाली मैं तेरी

कभी कभी मन करता है ...

या कि कभी जीवन संगिनी बनू मैं तेरी
या भांत भांत के रिश्तों से रिझाऊँ बहलाऊँ तुझे....

पिता भाई सखा बेटा प्रियतमसाथी
कुछ भी बने तू मेरा
जो मेरा अपना हो
हिस्सा हो मेरी साँसों का

कभी कभी मन करता है ...

मैं आइना बनू तेरा तू मेरी परछाई हो ...
यह कैसा रिश्ता है बीच मेरे तेरे
न मैं समझ पाऊँ इसे न तुझे

रविवार, 21 जून 2009

uneendein

लगाम दोगे ज़रा ख्यालों को
तो सो पाओगे ...

कह दो जरा इस दिल से कि थाम ले
खुद को पल भर के लिए
कि कुछ सुस्ता भी सको

कह दो इन आँखों को
झपक ले पलकें
कि बहुत लम्बे हैं इन्तजार
पल भर को आराम तो कर ले

लगाम दोगे ज़रा ख्यालों को
तो सो पाओगे ...

बुला लो क्षण भर के लिये ख्यालों के राही को
बैठा लो पास तो तनिक
थकान उतार लें अपनी

लगाम दोगे ज़रा ख्यालों को
तो सो पाओगे ...
- Show quoted text -

सोमवार, 15 जून 2009

जिन्दगी की परछाइयां

टूटे रोशनदान में
चिडियों के घोंसले
जिन में उन के बच्चे चहचहाते हैं...
उखड़ी खिड़कियाँ
जिन पर लकडी के टुकड़े ठुके हैं


किवाड़ भी आधा अधूरा सा
न कभी बंद हो न पूरा खुले
चाहे जो आए कुछ भी ले जाए
दीवालें कहीं हैं, कहीं नहीं हैं
उन की ओट में बच्चे लुकाछिपी खेला करते हैं

फर्श पर पैबंद लगे हैं
जीवन की दास्तानों के ...


प्रभु की कृपा की छत है सर पर
टपकती है तो घर भर जाता है
खुशियों से.. मुस्कानों से...


आँगन के गढ्ढे जब भर जाएं पानी से
तो हम भी उतार देते हैं कश्ती ख्यालों की ...


पानी जो आया भीतर कभी
न फिर लौट पाया कभी
रह गया यहीं सदा के लिए ...


बना लिया इस मिटटी के घरोंदे को घर अपना
कर लिया गुजारा ...

सूखे ख्यालों की रोटी और प्यार के रस से
भर लिया पेट अपना

हवा की सननन सनन
बरसात की रिम झिम करती लोरी ने
चांदनी के बिस्तर ने
जी भर के नींदें दी ...

इसे कोई उजड़ा मजार न समझे
यह बस्ती है मेरे बसते दिल के शहर की
जिस में बसते हैं सब दुनिया
के प्यार करने वाले दिल

टूटे रोशनदान में
चिडियों के घोंसले की तरह
जिन्दगी की परछाइयां ...

A M R I T A

aap ka teh dil se shukriya
naheen to kaun padta hai kisi ka likha aur kaun deta hai itni tawajo jarra nawazi ke liey phir shukariya

रविवार, 14 जून 2009

khyaal

मुझे ने बाँध पाएंगे ये किनारे
न ही रोक सकती ये दीवारें

मुझे न बाँध पाएँगी ये बहारें
मुझे न पकड़ पाएंगी ये हवाएं

रात ही स्याही से मैं डरती नहीं
क्या कह लेंगी मुझे यह सावन की घटाएं

यह चंदा यह तारे यह सूरज
कोई न मुझे संभाल पाए !!

यह बादल यह आकाश
नहीं मुझ को यह छू पाए !!

पास किसी के में रहती नहीं
किसी की होके रहूँ ये मुमकिन नहीं

यूं तो में सब की हूँ
जो बुलाले प्यार से
उसी ही की हो के रहती हूँ


नन्हे हाथ भी रोक लेते मुझे
प्यार की खातिर
मिट मिट जाती हूँ में

में हूँ प्रीत जो बसती हूँ सब में
पर कोई मुझे न रोक पाए
मुझे न पकड़ पाएं ये हवाएं

में लोरी हूँ प्रीत की
स्वच्छंद विचार हूँ
एक ख्याल हूँ
प्यार हूँ

शनिवार, 13 जून 2009

ik yaad

इक याद मेरी है, पास तेरे..
रख लेना संभाल कर
टूट न जाए सपना बन कर
रख लेना दिल के किसी कोने में
भूल न जाना यहाँ वहाँ रख कर
इक याद मेरी है, पास तेरे...
रख लेना पलकें बन कर
कहीं टूट न जाएं सपना बन कर
इक मेरी है पास तेरे रख लेना रूह में ढक कर

चुरा न ले जाए कोई अपना बन कर
इक याद मेरी है पास तेरे
रख लेना अपनी चाह भर कर
कहीं छीन न ले जमाना दुश्मन बन कर
थामे रहना हाथों में कस कर
कहीं मजबूरियाँ उड़ा न ले जाएं तूफ़ान बन कर
इक याद मेरी है, पास तेरे ...
ओढे रहना उसे हर पल
कोई उठा न ले जाए छल कर
इक याद मेरी है, पास तेरे ...
मिलना उस से रोज़ हर पल
अधूरी न रह जाए कहीं अरमान बन कर
मुझे ने बाँध पाएं गे यह किनारे
मुझे न बांद्ध पाएं गी यह बहारें

नहीं रोके सकती यह दीवारें
मुझे न पकड़ पाएं गी यह हवाएं

रात ही स्याही से मैं डरती नहीं
क्या कह लेंगी मुझे यह सावन की घटाएं

यह चंदा यह तारे यह सूरज
कोई न मुझे संभाल पएय

यह बादल यह आकाश
नहीं न मुझ को यह छू पएय



पास किसी के में रहती नहीं
किसी की हो के रहूँ य्व्ह मुमकिन नहीं

यूं तो में सब की हूँ
जो बुलाले प्यार से
उसी ही की हो के रहती हूँ
नन्हे हाथ भी रोके लेते मुझे
प्यार की खातिर
मिट मिट जाती हूँ में
में हूँ प्रीत जो बसटी हूँ सब में
पर कोई मुझे न रोक पएय

मुझेई नहीं मालूम में काया कहना चाट इहूँ
में स्वाचंद विचार हूँ
प्यार हूँ
एक ख्याल हूँ
लारी हूँ प्रीत की

मंगलवार, 9 जून 2009

yaad

यादें इकठा कर
बुनती हूँ सपनो की चादर
रोज़ रात
ओढ़ के सो जाती हूँ

सुभह होते ही दिन चडते ही
आँखें खुलते ही
सुब उधेड़ देती हूँ चादर
दिन भर रहती हूँ खोई खोई
तेरे ख्यालूँ में रोई रोई
तुझ से करती हूँ बातें
हमेशां तुझे ही पास पाती हूँ

तुझ से मिलने की आस
तुहे देखने की प्यास
दिन भर दौडाती है
जिन्दा रख पाती है
तेरी याद तेरी प्यास
तेरी आस की फिर बुनती हूँ
चादर इक
सपनो की और सपनोमें खो जाती हूँ

allah

एक एकेली न कोई सहेली
मैं अलबेली नार नवेली

पर नहीं में अकेली
की अल्लाह है मेरा बेली

करती हूँ खुद से बातें
कहाँ गई वोह अकेली रातें

धरती मेरा बिछोना
अम्बर है मेरा ओड़ना

सागर मेरी कश्ती
यह कायनात मेरी हस्ती

मौजें मेरी पतवार
जाना है मुझे उस पार

प्रीतम की बाहूं में
बिछ जाऊं गी राहून में

मैं नहीं किसी की मुहताज
साथ है मेरे मऊला आज

मैं कहाँ एकेली
जब अल्लाह मेरा बेली

justjoo

उमंगें
उमीदें
आसरे
सहारे
आरजुएं
इच्छाएं
तमन्नाएं
इन्तजार
सब पुरे हुए
आज
अभी
इसी वक़्त
इसी घडी
जैसे ही
नाम इक
देखा
जाना पहचाना

सोमवार, 8 जून 2009

bewafa

बेवफा यह दिल मेरा
पल में जा हुआ तेरा
प्यार किया दुलार किया
फिर भी बोले पीया पीया
बहुत पकडा बड़ा रोका
फिर भी दे गया धोखा
कितना चाहूँ पास बुलाऊँ
फिर भी कहे मैं जाऊं मैं जाऊं
समझी है मेरा अपना
पराया था यह दिल अपना
बेवफा अधूरा सपना
जा दे दिया तुझे
नहीं चाहिए मुझे
बेवफा दिल यह मेरा
पल में हो गया तेरा

sapne

चांदनी रात में भीगी बरसात में
जग जग तारे गिनना अच्छा लगता है

कड़कती धुप मैं नंगे पावं छत पे जा के
तुम से मिलना अच्छा लगता है

रात में जागना
दिन में सपने बुनना अच्छा लगता है

तुम से मिलना
बातें करना अच्छा लगता है

कुछ अपनी कहना
तुम से सुनना अच्छा लगता है

घंटों सामने बैठ
तुम को तकना कुछ ना कहना अच्छा लगता है

झूठ बोल छुप छुप
चोरी चोरी तुम से मिलना अच्छा लगता है

प्यार हुआ इकरार हुआ
कहना सुनना अच्छा लगता है

सिखियूं में बैठ
तुन्हारी बातें करना अच्छा लगता है

कोई जो कह दे
तुम्हारी हूँ में सुनना कहना अच्छा लगता है

लिखना नाम अपना
साथ तुम्हारे नाम के अच्छा लगता है

सागर किनारे
साथ तुहारे घूमना फिरना अच्छा लगता है

मिल कर बिछ्रना
फिर मिलने का इन्तजार करना अच्छा लगता है

तुम से मिलना
मिलते रहना कभी न बिछड़ना अच्छा लगता है

जीवन का हर सपना अब अच्छा लगता है

शनिवार, 6 जून 2009

raahein

न आती देखी
न देखी कभी जाती
सब कहते हैं
यह राह मुझे
मेरी मंजिल पहुचाती
रहती सदा स्थिर
एक ही करवट
ता उम्र
मिटती जाती
आह न भरती
जलती दिन भर
कड़कती धुप में नंगे पाँव
सरपट भागती जाती
जड़े में भी न मौजे पहने
न जूते न चपल
बर्फ सी ठंडी हो जुम जाती
कौन सुने इस के कहने
न गिला करती न शिकवा कोई
कहने सब के माने
घर पहुंचाए काम ले जाए
सब के सब हैं इस के अपने
पर न होती किसी यह
जब राह भूलती जिस को यह
न मंजिल न काम पहुंचती
कहाँ रह गया घर
जाने किसको
गर न होती राहें
तो मंजिल काम न घर ही होते
होते भी सब
पर कोई पहुँच न पाता
बिन राहों के पहुंचे कौन

paimana teri yaad ka

बैठ कर मैखाने में प्यार के
जाम पे जाम पिए तेरी याद के

पैमाना प्यार का छलक छलक जाता हे
जब मैखाने में तू नजर आता हे

आन्खून में भर के जाम इन्तजार के
जाम पे जा पिएय तेरी याद के

देख फटे हाल मेरे दिल के
मैखाने का हर जाम छलक जाता हे

साकी बुझाए प्यास सब की
खुद प्यासा ही जाम मर जाता है

भरा भरा सा हर जाम
हर शाम भर भर खाली हो जाता हे

नजरूं के जाम जो पि ले कभी तू
देखना मेखाना कैसे झूम झूम जाता हे

गुरुवार, 4 जून 2009

naari

फूलूँ फलूं से लड़ी बेल सी होती हे नारी
जनम से ही मांगे सहारा बचिआं सारी
कभी बाप कभी भाई की बाहूं पर भारी
ता उम्र अंगुली पकर के चलना रखे जारी
कितनी भी बरी हो चाहे पहने साडी
फिर भी एकेले रहना परे भरी
उअर भर रहती मर्द की आभारी
तन मन उम्र उस के आगे हारी
रहती हे बन के दासी उम्र साड़ी
कभी बने बहिन कभी मातारी
जीवन सारा लुटा देती जाए दूजून पे वारी वारी
नहीं तू अबला नहीं तू नहीं बेचारी
नारी तू शक्ति हे नहीं तू बेसहारी
तुझ को न समझ पाई यह दुनिया साड़ी
यूं तो पूजे तुझे अल्लाह की कायनात सारी
तेरे आगे दुनिया की सब सूझ हारी
तू सुन्दर हे हे तू कितनी प्यारी
नारी यह जग रहेगा सदा तेरा आभारी

tasweer

सावन के महीने में
खुश खुश रहती हर दम
रंग बित्रंगे धारे वस्त्र
करके श्रृंगार
लाली ले सूरज किकिरानूं से
पहने गहने फूलूंके
माथे पे सजा के कुम कुम
करती इन्तजार झूम झूम
भर के प्यार सीना में
सावन के महीने में
जब घिर घिर आते बादल
कारे कारे बादल पहनते काजल
घटाए हवान में जुल्फे भिक्राती
सावन के महीना में
प्यार भर के सीने में
अचानक चमक उठती बिजरी जो
तस्वीर खीच जाती जमीन की
आसमान के सीना में
सावन के महीएने में

sookhe patte

सूके पत्ते
कल तह थे जो बातें करते हवा के संग
हिते डुलते झूलते द्रख्तून पे चढ़
खूब इतराते किस्मत पर अपनी
पतझर आया उसी हवा के झोंके ने
फिर दुलाया
ला जमीन पर पटकाया
हुए धरा शाई
मुँह के बल परे रहे गे
ठोकर में जमाने की
खटकते आन्खून में सब की
मिल ख़ाक में ख़ाक हो रहे गे
सूखे पत्ते
कभी किस्मत ने पलती खाई
हवा आई ले गई उरदा
कहीं कभी कहीं कभी
उरते उरते जा बेठे किसी प्रेमी के करीब
रख ले जो किताबोमें
खोए मीठी यादूं में
जी जाए फिर
एक उम्र और
हो जाएँ अमर
सूखे पत्ते

बुधवार, 3 जून 2009

ghariyaan

कलाई पे बंदी
याद दिलाती अपनी हर वक़्त
वक़्त याद दिलाती धरी
घरियाँ पहने तोरें बनाएं
ख़रीदे बेचे घरियाँ सब
ले ले कभी दे दे तोफे में
घरियाँ सब
दिन रात गिनते हम घरियाँ सब
पर इक ने मिलती
जिसे कह पते अपनी
जो हो के रह जाती अपनेइ
थम जाती साथ निभाती
कभी न मिल पति घरी इक
कहते सब मिल बीइठो घरी दो घरी हमारे संग
पर कहाँ किसी की हो कर रहती घरियाँ
जो बाँध बाँध
रखते कलाईयूं पर हम सब

antim ghari

टिक टिक टिक करती
दीवाल पे तंगी
कहती मन को टिक टिक
टिकने को कहती
पर न टिका पाती वक़्त
दो हाथ चलते
लगातार चलती बिन पेरून के
चलता वक़्त दिखाती
खुद देखो हे टिकी हुई
दीवाल पर घरी
बुलाती हर दम संन्नाते में गूंजती
सोते को जगाती
फिर खुद ही सुलाती वाकर पर
दीवाल पे तंगी घरी
सुब को भगाती काम पौन्चाती
फिर घर भी ले आती वक़्त पे
खुदही दीवाल पे तंगी घरी
जल्दी मचाती
परेशान करती
टिकी हुई भी कहती
चल चल जल्दी चल
खुद न कभी जल्दी करती
दीवाल पे तंगी घरी
यूं हो जीवन भर चलती
कभी न आक्ती
कभी न थकती
चलती चलती
दीवाल पे तंगी घरी
बस यूं ही इक दिन
चलते चलते
सुब छूट जाते पीछे रह जाती तंगी दीवाल पे घरी
जब आ जाती किसी की अंतिम घरी

मंगलवार, 2 जून 2009

likhoon kuch

डुबो के कलम ल्फजून की
साही में अरमानो की
ले के मशवारे इरादे से
बिठा के ख्यालूँ को
आँचल के झूले में
रोज़ बातें करती हूँ
अन्गुलियूं से
लिखती हूँ पाती
पर लिख नहीं हूँ पाती
जब तक न मिल जाए
कोई एक साथी
जो देदे अपने कान
सुनने को मेरी तान
मेरे ख्वाबून की उदान
चले मेरे संग
पहचाने मेरे सब रंग
देखे हूँ जिसने मेरे ढंग
हो लूं में उस के संग

तो लिख पाती पाती
में उसी की ही हो जाती

budhiya hoon mein

नजरें कुछ धुंधलाई सी
चाल कुछ लड़ख्राई सी
जितना ऊंचा सुनती हूँ
उतना ही धीमा बोलती हूँ
दांत भी कुछ हे कुछ नहीं
कहती हूँ कुछ
सुनती हूँ कुछ और ही
आधे अधूरे शब्द
बिना चबाए ही निगल जाती हूँ
दिमाघ भी चल गया है शायद
चल भी नहीं पति हूँ न
हस्ती बहुत हूँ
बार बार दांत हाथ में आ जाते हैं
अरे में कोई जादू की पुरिया नहीं हूँ
बस कुछ ही बरस हुए
नन्ही सी गुडिया थी में
आफत की पुरिया थी में
हाँ खूब पहचाना आपने
एक नई नयी सी बुधिया हूँ में

garmi ki dhoop

देखि गर्मी की दोपहरी में
धुप भागती दखी
धुप से मुँह छुपाए
लिए लाल लाल गाल लाल हुई
गली गल भटकती
भागती
गिरती पटकती
देखी धुप
राहत पाने को कभी वरिक्शूं से खेलती आँख मिचोली
तो कभी जा बैठती दीवारून से सैट के
पाऊँ सिकोरती
आँचल सर पे ओर्ध्रती देखि
धुप
धुन्दती साए जो सुख पहुंचे
कभी पततूं को हिलाती
फंखा झुलाती
पल भर को ठंडी होने को
माथे से पसीना पोंछती देखी धुप
नदियूं से मिलती नालूँ में झांकती
सागर की लहरून से मिन्नतें करती
गर्मी की दोपहरी की धुप
जहां देखा झरना
गट गट पी जाती
हवा को भी मुँह बाहे खा जाती
गर्मी की दोपहरी की धुप
नहीं पाती राहत
कहाँ हो पाती ठंढी
गर्मी के दोपहरी की धुप
थक हार कर
माथा पीट लेती
जा बैठती
संध्या के सिरहाने
जरा सुख पाने
वोह गर्मी की दोपहरी की
धुप

garmi ki dhoop

देखि गर्मी की दोपहरी में
धुप भागती दखी
धुप से मुँह छुपाए
लिए लाल लाल गाल लाल हुई
गली गल भटकती
भागती
गिरती पटकती
देखी धुप
राहत पाने को कभी वरिक्शूं से खेलती आँख मिचोली
तो कभी जा बैठती दीवारून से सैट के
पाऊँ सिकोरती
आँचल सर पे ओर्ध्रती देखि
धुप
धुन्दती साए जो सुख पहुंचे
कभी पततूं को हिलाती
फंखा झुलाती
पल भर को ठंडी होने को
माथे से पसीना पोंछती देखी धुप
नदियूं से मिलती नालूँ में झांकती
सागर की लहरून से मिन्नतें करती
गर्मी की दोपहरी की धुप
जहां देखा झरना
गट गट पी जाती
हवा को भी मुँह बाहे खा जाती
गर्मी की दोपहरी की धुप
नहीं पाती राहत
कहाँ हो पाती ठंढी
गर्मी के दोपहरी की धुप
थक हार कर
माथा पीट लेती
जा बैठती
संध्या के सिरहाने
जरा सुख पाने
वोह गर्मी की दोपहरी की
धुप

raat bhar

चादर ओर्धे चाँदनी की
रात ..............
रात भर .......
मूंदे अखीयान करती इन्तजार
रात...........
रात भर
साजन का
नींद का ख्वाबून का
तारों से करती बात
रात....
रात भर ...
बदलती रही करवाते रातभर
रात...
जरा सी सरसराहट पर
हर आहात पर चौंक चौंक जाती
रात......
रात भर ....
न नींद आई न ख्वाब ऐ न तुम ही आए
रात भर
करवटें बदलती रही रात ...
रात भर न सोई
ख्यालूँ में खोई
प्यार में बेबस बेकरार
अब गई हार गई
रात......
चादर चांदनी की सरअकने लगी सर से
किरने सूरज क जो आ पडी साथ
मलती आँखे लेती अंग्धाई आधी अधूरी
रात....
उठ चली
छोड़ सिलवाते नींद की गोदी से
रात....
निकल चली वोह गई वोह गई
रात
उमीदे जगाए दिन भगा आया
मिलन की आस लाया
औब ख्वाब देखती हे खुली आन खून से
रात..
दिन भर
रात...

सोमवार, 1 जून 2009

kayoon kar

तेरी सोच सागर
तेरे ख्याल बादल
तेरी साँसे खुशबू
तेरे इरादे नेक
तेरे वादे पहार
तेरा साथ बहार
तेरी आँखे झील
तेरा मन विशाल
तेरा हुनर कमाल
तेरा पहन बेमिसाल
तेरा वडा वफ़ा
तेरा प्यार पूजा
कयूं कर भाए कोई दूजा

tumhare siwa

धुल परई जो सोच पर
उसे झार लूं जरा तो कुछ सोचूँ
नींद से बोझिल पलके ज़रा उठा लूं
तो कुछ देखूं
मन की थकान कोजरा आराम दे लूं
तो कुछ मानु
लगाम ख्यालूँ कीजरा खींच लूं
तो कुछ समझूं
ख्वाबो को जो सुला आऊँ
तो कुछ ध्यान दूं
जुब्बन थम जाए जो पल भर को
तो कुछ कहूं
न सोच साफ़ हुई
न दिल ही मानता है
नाख्यालूँ को ही हे आराम
ख्वाबो को नींद नहीं आती
जुबान को कहाँ हे आराम
पलकें मूंदी ही रहती हे सदा
तो
क्या सोचूँ क्या मानू क्या बोलूँ कया समझूं काया कहूं
तुम्हारे सिवा ........

raat

चादर ओर्धे चाँदनी की
रात ..............
रात भर .......
मूंदे अखीयान करती इन्तजार
रात...........
रात भर
साजन का
नींद का ख्वाबून का
तारों से करती बात
रात....
रात भर ...
बदलती रही करवाते रातभर
रात...
जरा सी सरसराहट पर
हर आहात पर चौंक चौंक जाती
रात......
रात भर ....
न नींद आई न ख्वाब ऐ न तुम ही आए
रात भर
करवटें बदलती रही रात ...
रात भर न सोई
ख्यालूँ में खोई
प्यार में बेबस बेकरार
अब गई हार गई
रात......
चादर चांदनी की सरअकने लगी सर से
किरने सूरज क जो आ पडी साथ
मलती आँखे लेती अंग्धाई आधी अधूरी
रात....
उठ चली
छोड़ सिलवाते नींद की गोदी से
रात....
निकल चली वोह गई वोह गई
रात
उमीदे जगाए दिन भगा आया
मिलन की आस लाया
औब ख्वाब देखती हे खुली आन खून से
रात..
दिन भर
रात....

शनिवार, 30 मई 2009

ek sawaal

मिल जाये जो आज मन मरे
तो फूछूं उससे
कहाँ खोया रहता हे आज कल
ध्यान पर जो पर जाए नजर आज मेरी
तो खबर लूं उस की भी
की किधर की उर्धान भर रहा हे आल कल
कदम जो थम जी थम पल भर को
तो करून सवाल उन से में
की उठते हैं किस की और जाने आककल
कलम को रोके के कहा मेने
के काया लिखती र्हिरती इ किस किस से बातें करती रहती हे आज कल
मन ने कहा तेरे ससाथ
ध्यान बोला तेरे पास
कदम भी चले तेरी और
कलम ने कहा तेरे बिन नहीं कोई और

mere ban

रागुन में दौरते फिरते हो रकत बन
चल रहे हो संग मेरे वक़्त बन
मस्तिक्ष में रहतो होमर ध्यान बन
सांससून में चलते हो जान बन
थामा हे हाथ मेरा मेरी आन बन
रहते हो साथ मेरे मेरी आन बन
चहरे पर टिके हो मेरा नूर बन
इतराती हूँ में भी तेरी हूर बन
ओंथूं पे रहते हो सदा अ मुस्कान बन
ता उम्र रहना न एक एहसान बन
त्रिपत करते हो इक सची आस बन
उमीदें जगाए हो मेरी प्यास बन
साथ देते हो मेरा मेरे यार बन
सहलाते हो मुझे मेरा प्यार बन
संग से तुम्हारे खिल रहती हूँ बहार बन
समर्पित हूँ में साचा इकरार बन
बदन में बस गए हो मेरी छूं बन
दिल चाहे रहूँ तेरी दुल्हन बन

शुक्रवार, 29 मई 2009

mehal ho sapno ka

आचल के तुजे में ले के चलूँ

ख्वाबून के पंखून पे हो के सवार
च चले क्षतिज के उस पार
महल ऐसा बनाए जिसके न हूँ दरू दिवार
जहां हो बस में तुम और प्यार ही प्यार
यह कैसा अजुनूं हे सवार
इस से मन गया हार
आ चल के चले उस पार
जहां फूल ही फूल हे नहीं कोई खार
दे दूं तुझ को बाहूं के हार
बेबस हो के तू दिल जाए अपना हार
आ जा के हो के ख्वाबो के पंखून पे सवार
चले हम दोनों करे बस प्यार ही प्यार

meri dor

अब डोरे मेरी पतंग की हे तेरे हाथ
रहन सदा मुझे हे तेरे ही साथ
वादा कर की न छोरे गा साथ
भले ही अभी छूट जाए हाथ

तेरी बन जाऊं गी
तेरी ही हो जाऊं गी
तू कहे दिन तो दिन बन जाऊं गी
रात भी कहे गर तो रात हो जाऊं गी
तेरी ख़ुशी तेरी मुस्कान तेरी हंसी बन जाऊं गी
तेरी चाहत
तेरी राहत तेरा सकूं बन जाऊंगी
तेरे लिए दुनिया के सुब ताने सह जाऊंगी
हर गम दुनिया का अपनाऊँ गी
तेरे नाज़ नखरे सुब पल्कूं पे उठाऊँ गी
गर तू जो कहे भूल जा
में तुझे न कभी भूल पाऊँ गी

गुरुवार, 28 मई 2009

mere hi liey

चाँद निकलता हे मेरे लिए
शायद अम्मवास भी आती हे मेरी ही लिए
चढ़ता हे सूरज मेरी लिए
अस्त भी होता हे मेरे ही लिए
चलती हे हवाए सन्न सनन मेरे लिए
गूम्मा सा होजाता हे जब रूकती हे हवाए मेरे ही लिए
मौसम आते जाते हे मेरे लिए
खिलते मुरझाते हे फूल मेरे ही लिए
बहते हे जो झरने कल कल मेरे लिए
तो रुके ठ्हेरे पानी भी हे मेरे ही लिए
उमर्ध उमर्ध आती हे घटाए गर मेरे लिए
तो छमा छम कभी रिम झिम बरसती हे मेरे ही लिए
खुश हे फिसाए उदास भी हो रहती मेरे ही लिए
सारी कायनात ही हस्ती रोटी भी हे मेरे ही लिए
जब से
बन के प्यार तुम आए मेरे लिए
गुमान न कर्रूँ में मेरे लिए
इतना न इतराऊँ में मेरे ही लिए
क्यूं में जो हूँ तो बस तुम्हारे ही लिए

pyaar

एहसास सा होने लगा हे
कोई बहुत करीब आने लगा हे
दिलू जान से चाहने लगा हे
दर सा लगने लगा हे
कुछ कुछ होने लगा हे
सोया प्यार जागने लगा हे
उमंगें अंगराई लेने लगी हैं
मन भर भर आने लगा हे
सपने दिन में दिखाने लगा हे
कोई इतने करीब आने लगा हे
दिल को धर्काने लगे हे
एहसास जगाने लगा हे
कोई बहुत प्यारा लगने लगा हे
मुझेई शायद प्यार होने लगा है

बुधवार, 27 मई 2009

pukara tum nein mujhei pyaar mein

चाद निकल आया हे अँधेरी रात में
जुगनू टिमटिमा रहे हैं आँगन में
खुशबूएं फेल गईं हैं फिजाओं में
फूल भी खिलखिला के हस रहे हैं बाग़ में
अन्ग्र्दाई सी आ रही हे बादलूँ में
मस्ती सी दीक परती है हवाओं में
खुमारी सी छा गयी हे जिंदगी में
उमंगें जाग गयी हैं मनमें
गुदगुदी सी हो रही है रूह में
घंटियाँ बज उठी तन में में
कम्पन सी जग गयी हे ओंठूं में
मुस्कुराहट से फेल गई हे आन्खून में
देखो हरकत सी हो रही है रुके हुए दिल में
चुपी सी लग्ग गयी है जुबान में
ख़ुशी के आनसु आ के रुके हैं मेरी आन्खून में
आज फिर से पुकारा हे मुझे किसी ने प्यार में

chaand

में चाँद की तरेह हूँ
भीख की रौशनी पे इतराती हूँ
कया दे पाऊँ गी तुम्हे में खुद मांगके खाती हूँ
खाली बर्तन को नादेखो ललचाती नजरूं से
में खुद को देख देख लज्जाती हूँ
तरसी हो जो खुद ता उम्र प्यार को
में ऐसी ही इक प्यासी नदी हूँ
न बेईठो मेरे इतने करीब किमें फिर बहुत सताती हूँ
जब मिलती हूँ तो सुख देती हूँ शायद
पर जाती हूँ तो बहुत याद आती हूँ
मत भूलो की में मया हूँ
मिलूँ तो भी भिच्रून तो भी बहुत बहुत सताती हूँ

amrita

में नहीं न हूँ वोह
जो आप सम्झेई हैं मुझे
मै गुम नाम बेनाम
शायद हूँ मै बदनाम
सुबह की धुंद जो छट जेइगी
शाम का धुंआ जो हो रहे गा धुंआ
छाया हूँ या की हूँ माया
छलावा हूँ या की हूँ सपना कोइ द्रादनाक
संध्या हूँ की सन्नाटा
शमशान हूँ या की वीराना कोई
कोई भूल नहीं
शूल चुबा सीने में हूँ मैं
इक टीस
इक चीख
एक हूक
उठती हेई जो सीने में रेह्रेह कर
दर्द हूँ दिल का
या हूँ रोगे कोई
एक सिसकी
इस सुबकी
इक आह हूँ दुब्बी दुब्बी
एक कतरा आन्सो
जो आँख से टपका और भिखर गया
नहीं में वोह नहीं जो समझे थे तुम मुझे
अमृता...............................................तो बस यूंही
क्यूं की तुम कहते हो

prem kahani

एक धरकन छोटी सी
बैठी घुटनों पर ठुदी तिकाएय

घर की देहलीझ पर
कुछ इस तरह टिकटिकी लगाए
राह पर
मानो हो किसी राही के इन्तजार में ..........
बैठी रही बरसून
बरसून बेठी रही
फिर अचानक एक दिन
दिल के द्वार पर दस्तक दी
एक धड़कते दिल ने
न जाने काया आया मन में उठ के चल दी
संग होली उस दिल के
न कुछ कहा
न ही पुछा
बस यूंही संग संग धरकने लगे दोनों
समा गए इक दूजे मेंईसे
न जुदा होंगे जैसे
फूल से खुशबू
हवा से रवानी
लहर से पानी
चाँद से चाँदनी
सूरज से रौशनी
एक ने कही दुसरे ने मानी
यूंही चलती गयी जिंदगानी
ना कही ना जानी
और सभी ने मानी............
बस यही है मेरी प्रेम कहानी

किसी ने कहा ...

किसी ने कहा ...

अमृत नाम में कुछ तो है
जो जीवन दायिनी है ...
तभी तो 'अमृता' का ख्याल ही भर देता है
रग रग में ऊर्जा, उमंग और उत्साह !

अमृत का अस्तित्व कहीं है
तो वहीं कहीं है
जहां है अमृतघट का सिन्धु, अमृता - अमृत परिसर ...

मन से छुअन सिहरन देती है
तन की छुअन सा अहसास भी ..
अमृत बरसा जाती है
च्यवनप्राश बन जाती है
आती है चिर युवा होने का अहसास जगाने ..

कहाँ बसा है वह अमृत घट ,
कहीं तो नहीं सिवा ह्रदय के
जगाता है जीवन जीने की चाह
अमरता - नश्वरता के बीच का सेतु सा,
दौडा देता है खोज में उस कस्तूरी मृग की
जो है सदा से मेरे भीतर
सुगन्धित करता रहता है
चिरंतन निरंतर .. सदा सर्वदा... अमृता की तरह...

मंगलवार, 26 मई 2009

chaand

चाँद को देखो
कितना सुन्दर कितना प्यारा
पर हे उस के मनमें दुःख का दाग़
ले कर कासा भीख का हाथ ्मे
रोज़ करे मिन्नत
सूरज की
तरसे प्रीत की चांदनी को
मांगता फिरता
एक बूँद प्यार की
कभी जो रवि को तरस आजी
टपका दे बूँद इक प्यार के
ख़ुशी से फूला न समता हो रहता हेई चाँद पहेली का
फिट उसी ख़ुशी में देखो देखो
हो चला हे दूझ का वोह
फिर इतराता होता तीझ का
और चौथ का हो रहता
कभी जो प्रस्संं हो जाय रवि देवता प्रकाश का
तो हो रहता यह चाँद प्यारआ चौदवीं का
चाँद हमारा

thoonth

सरक के किनारे खरा में
एक बहुत पुराना एकला ठूंठ हूँ में

रोज़ इसी इन्तजार में हूँ
की पल भर को कोई आएय और आके मेरा हाल बताएं
में भी कुछ पाऊँ कुछ खो दो उस के मिलने में
कभी बुझेई मेरी भी प्यास
हाँ आतें थे
कभी कभार
मेरी छाया का सुख भोगने पल दो पल को
मुसाफिर देते थे चल अपनी अपनी राह
में वही खरा
एकला फिर तकता हूँ राह किसी दूजे की
मीठी ठन्डी छाया
मधुर खुसबू मेरे पतूं
फूलों की
मीठा स्वाद मेरे फलूं का
सुब चखते थे
पर मेरा कोई हो जाए सदा के लिएय ऐसा कभी न होपाया
इस मतलब के संसार में सुब मिलते हैं कुछ ले जाने को
बिचर जातें हैं तरपाने को
करके वादा फिर मिलने का
कभी न लो़त कर आतेइहें
कुछ ऐसा ही है
दस्तूर यहाँ का
ले ले ते हेई भूल जातें हैं देना
तभी तो हूँ में आज भी अकेला

सोमवार, 25 मई 2009

heavens

it just feels as if some has him self gone to the gardens of heaven collected not only the dew drops off the newly sprouted petals and the fragrance of the flowers with their own eyes dipped then in the ocean of love that is flowing in thy heart and has sent them my way through the clouds before the dawn first ray of sun shine reaches the earth it showers on my face the soft love you send every single day your love is poise so pure like the morning dew drops that come from heaven
share it

terebin

bin tere
adha hai chand
adhi andheri hai raat
aadhi roshan hai roshni
kitni ekeli si hai raat

terebin
aadhi si hasrat
aadi hai chahat
adhoori shararat
aadhi hai dil ki hararat

bin tere
aadhi si hansi
sub khushiaan adhoori
aadhi hai bharein
aadhoora hai sawan

terebin
aadhei heinmere bol
aadhi sub dhunein
aadhey hein mere geet
pheeka adoora sangeet

bin tere
pyaas aadhi meri
aadha hai pyaar bhi
adha adhoora sa man
aadhi si hoon mein bhi

terebin
aub to aaja
aaja oh chaand chaudhween key
aaja ki pure ho jaein armaan jindagi key
aaja ke puri ho chahat humari
aaj ato khil jayein gul khushi key

aub to aaj
aaja to ho rehein baharein humari
aaja ki pure ho geet humarey
aaja ki ho jaye mulakaat puri
aaj ki ho jaoon MEIN PURE KI PURI

tere bin hoon mein adhoorey ki adhoori
aub to aaj ki ho jaoon mein poorey ki puri

na janei

abhi juda huei he nah thei jaise

aaj sadeeyoon se pehle

janamo ke pare

barsoon purana milan phir hua

naya jawan pehla sa pyaar

jaisa kabhi hua na tha

najane kub kahaan

kyoon kaise chuta tera haath

kis mele mein kho gaya tera saath

aaj is bheer mein

is patheroon ki duniya mein

is endheri raat mein

is andhee duniya mein

jahaan haath ko na sujhe haath

dhund liya tere dil ki dharkanoo ne mera haath

rakh diya jo is seene par

cheir gayee jeewan ke taroon mein aise jhankaar

bhole geet sub loat aye

dil dharkta hai har pal

khaab ho gaye hai sub such

mile gaye hum dono aise

ki kho jai hoon ek duje mein jaise

kabhi juda na huei thei kabhi

jaise kabhi juda huei he na thei

sagar ki beti

pani se upji
pani ki beti
janami pani mein
pali bari pani mein
sundar
natkhat
alhardh
nadaan
pyari
bahut sari
jhat pat
bhagti fandti
kudti
uchalti
machalti
hasti khelti
kalole karti
chahakti
shore machati
jhumti khushi
se lehrati moj mein
chali chali wow
moj
chali
bekabu
bebas
jawaani
bal khati
nachti thumkati
chali chali
wow shrarat bhri

milne pritam se
mano ho rahe gi us ki
reh jai jipaas us ke

bas jai gi dil mein
kar legi ghar roohmein

par kahaan reh pati
hai lehar
kinare par kabhi
jhat pat
kal kal karti
kal aayoon gi
karke wada
wada karke
kal aaoongi
keh ke

loat jati phir
pani mein
ja basti pani mein
sagar ki beti
upji sagar se
sagar mein
mil rehti sagar se
ho pani pani

ek baar

EK BAR

ONTH SIL JAYEIN

SANSEIN THUM JAYEIN

AHSAAS SO RAHEIN

HOSH KHO RAHEIN

SUB HARART JUM JAYEIN

SUB SHARARAT SHARM JAYEIN

SAMA RUK JAYEIN

DIL GHABRA JAEIN

ROOH KAAP JAYE

JO WADA WAFA HO JAYEIN

TU JO EK BAR

AA KE SAPNE MEIN

MUSKURA JAYE

CHAHAT KI SUB HADEIN

PAAR HO JAYEINA

intjaar

ose intjaar

ki shayad

kabhi to aayeee gi

yaad humari

rose dharakta haii dil

dhrak dharak chup ho rehta

intjaar lumbe

aur lumse

sham ke saye se

pegam latei hein

lumbi

kali

andheri ekeli

raat ka

par ummed

hai subha hogi

tere milne ki

pegamm ane ki

koi aahut

koi dustak

koi dutak

koi kiran

kare giu jala kabhi to

kabhi to subh hogi

isi umeed mein hoon

har pal

mere hal pal
har ghari
har lamha
mera waqt ho tum


her dharkan
har siski
har aah
har tradap ho tum


meri chuan
meri chubhan
mare ahsaas ho tu m

meri hasi
har khanak
har cahak
meri muskaan ho tum

meri khija
meri bhaar
mere jahaan ho tum

mere lub
mere bol
meri jubaan to tum

mere aansoo
meri aahein
mere armaan ho tum

mera dard
meri dava
mera ilaaz ho tum

mera dil
meri dharkan
meri jaan ho tum

khaan ho tum
meri jaan
kahaan ho tum

kaise na janatum ne
kimere kaya ho tum

mein hoon tum tum ho mein
mein tum tum meinhoon

mera imaan ho tum

angel of love

the angle of love that
lives in me
fills my heart
every night
when i am sleep
and wispers in my ears
to shower
her blessings that i have have got

on the one who
comes to my thoughts
first of all
awake or insleep
and it so happens
that every time


it is one lonely heart
that happens to just pass
every minute of the hour
and is showered upon
with i have got

over night
in my sleep
the necter of love
as you are the one
that deserves the best
में नहीं न हूँ वोह जो आप सम्झेई हैं मुझेई .
में गम नाम बेनाम शयद hoon mein bad mnaam सुभ की धुंद जो चाट जेइगी
शाम का धुंआ जो होरेहेई गा धुंआ धान
चाय हूँ या की हूँ माया
चलवा हूँ या की हूँ सपना कोइदारावाना
संध्या हूँ की सन्नाट शमशान हूँ या की वीराना कोई
कोई भूल नहीं शूल चुबा सीने में hoon mein
इक तीस इक चीख एक हूक उठती हेई जो सीने में रेह्रेह कर
दर्द हूँ दिल का या हूँ रोगे कोई
एक सिसकी इस सुबकी इक आह हूँ दुब्बी दुब्बी
एक कतरा आन्सो जो आँख से टपका और भिखर गया
नहीं में वोह नहीं जो समझे ठी तुम मुझेई
अमृता...............................................hoon bus yoohi
kyoon ki tum kehtei ho





TUHI

kahaan ho

ho khaan

dhoonda tumhe

har sehar har sham

bheetar bahar

udaaseeoon mein

sanunatoon mein

gehrayeeoon mein

gumnami mein

kheejaaaon mein bahaaroon mein

ratoon ki tenhaayeeoon mein

subh ki pehli kiran mein

jarde ki dophehri mein

garmi ki chaoon mein

patjhar ki sookhi patteeon mein

har tasweer mein dekha kiye

har dil mein jhanka tere liye

har aahut pey chonke

ki shayad ho tum

tum kahaan ho kahaan ho tum

mere ishwar

tum to ho har soo

meri he ankhein band hein
hai naheen woe dil jo jaan sake
woe rooh jo pehchan sakei
tum hi to ho jo base ho mujh mein
meri sansei ban
jise dhekhti hoon aainei mein
jo betha meri jubaan par
sarswati ban
jo dil ki tik tik raha hai kar
aur jo yehsub keh raha
kar raha aur jee rha
hai mujh mein tujh mein hum sub mein
tuhi tuhi tuhi tuhi tuhi tuhi hai

jarei ka pyaar

dhoop bechari
thandh se sikuri pari hei aise

patte peiroon ke
kudh ko kudh se hi dakh rahe hoan jaise

jarde ke din
bhi din hein aise

sardi ko khud
sardi ho gai ho jaise

hawa bhi dekho
kaamp rahi hai kaise

jameen ke labh
bhi path rahe ehin kaise kaise

badloo ki ankhoon se
tapak rahe hein aansoo asise

naak bhi to beh rahi hai
ki patiyoon ki waise

raat raat bhar
aordh rahi hai kambal pe kambal kaise ksiae

thndhi ho rahi hai
chulhei ki aag bhi waise

jum gaye hein mere
ehsas bhi kuch aise

thandh lag gayi ho
mere pyar ko j aise

thar thara rahei hein
mere jazbat kuch aise

kampan si chir gayi hei
mere dharkanoo mein kaise kasie

aub to aaja
ki mil jaye pyar pyar se aise

ki beh ti jai
jare ki garam naram doop jaise

lo hum aa gaey

rome rome se
beh niklein jharne chahat ke

har su phel jaai
kushboo chaman ke hasseen phoon ki

jhankar chir jai
dharkano ki taaroon mein

goonj uthe mishree shahad
sa tera naam kano mein

hajaroon suraj chaan
ikatha ho sajaei mere din raat

sipiyaan bhikherein
moti meri raahoon mein

barse pankhurian
ambar se najuk phooloon ki

chanchal priyaan
khelein godi mein dharti ki

oons ki bunde
aa bethein meri palko par

khushian
umardh umardh aye mere ghar

rehmetein ho jaein
naseeb jo allah pak ki

thupthupai
mera kandha jo tu kehne ko

llo hum aa gaye
tujhei milene ko

hoon mein paas

kaya kahoon kaise kahoon kuch kaha na jai


lavsoon ne chor diya hai saath mera

jub se dekha hum ne yeh tera andaaj naya

suna karte thei pyaar mein log shayar ho jate hein

aaj kar liya eitbaar tera

intjaar ki ghariann yoon lambi ho jateen hein yeh naheen tha khyaal mera

tujh ko chaha tujh ko paa lengey yehi hai ekrar mere

bus ghari do ghari ki to hai baat

mil rahe ga sub tumhein pyar mere

ankhein kar band karoo intjaar mera

lo mein aa gayi kar lo didar mera

dal ke ankhoon mein aankhein

mil jane do lubhoon ko

bahoon ko kar lo haar gale ka gale

jhankoo tojara dil mein apne

dhekho hoon na paas tumharei

waheguru

ek junoon

chandani mein,
andheroon mein,
saweroon mein
roshni mein
dhekha hai
tujhei nihaarnei ka

ek chahat

man mein
tan mein
,dharkanoon mein
, rooh mein
mehsos ki
tujh se mil mil jane ki

ek hord

sitaro mein
,badloon mein
,hawaoon mein
ghataoon mein

lagi hei tujh se
lipat lipat rehnei ki

ek daur

baharoon mein
fijaoon mein,
lehroon mein
hawawoon mein

chal rahi hei
tujh mein bus bus rehnei ki

ek intjaar
tujh se milan ka hai
mere prahu
mere iswar
allah mere
hei mere waheguru
parte hi khat mein apna naam

ik muskurahat se khil jati hai

aankhonn mein ek chamak

sansoon mein mahk si aa jati hai

sunte hi tumhara naam

dil mein dharkan aur

badn mein kampan si chir jati hai

dekhte he tumhein

najre bolne lagti hein

aut lub sil jate hein

yuhi jub do dil mil jate hein

aur waqat thum jata hai

jameen par swarg uttar ata hai
bhati mein jal jal sona nikharta hai
beech koyleoon ke reh ke heera damkta hai


haan tum paras ho mere mein tumhari loeh(iron)
ho rahi kanchan kanchan pa ke tumhari choeh

heera samjhte ho...... to na ana kareeb
aa gaye to koso gey apne naseeb

jo garja karte hein woe badal barste nahi
sub jo damkatein hai heerei hote nahi

ek kanch ka tukra hoon jo kaat ke rakh de
koi pyar se puchkare to pighal ke beh de
poocha karte ho
kahaan chupi ho tum

dhoonda yahaan wahaan kahaan khaan
par jhanka naheen na tumne yehaan
jahaan hoon mein hameshaan hamesh sadase

teri nazar mein nazaaroon mein
tere dil mein dharkano mein teri

tere bolo mein awaaz mein teri
tere choone mein sparshoon mein tere

teri batoon mein
teri dhunoon mein geeto mein hoon tere

teri aahoon teri muskaan mein
hoon mein haseen mei teri

tere dukhmein tere sukhmein
tere gum mein khushi mein hoon mein teri

tere saaz mein teri dhoono mein
geetoon mein hoon tere

ek bar choo ke dekh apne dil ki dharkanoo ko

sun keh rahi hein thujh se yeh

rooh mein basi hoon mein teri

dharkte dil mein dharak rahi hoon teri
har saans mein jee rahi hoon mein
sang sang hoon mein ter e
tujh mein he hoon mein
mujh mein hai tu
ek duje ki jaan hein hum

karlo apni

haan kuch aisa hi karna
aankhon ke rastei
kano ke jariey
chooan
ke saath

mere bheetar bahar
char chpere ghoom ghoom kar
apni de kar najar
dikaho najare apne
de kar sunne ki shkati
siraf sunaaow dhune apni
gaoon mein geet tumhare
choo lo yoon ki
har saparsh ho siraf tumhara
dharkan meri ko sikhlao
dhak dhak naye sire se
dharke to tuhare liey
keh do aaj rooh ko meri
ho ke bus reh jai tumhari
moond jaiey palakein
bus dhek ke sapne tumhare
aur
sansei bhi gar ruk jaein to
janam loon meinphir se
hone ko tumhari
aajao bas raho bheetar mere
maanjh kar dhokar
kar lo kuwari phir se ho rahoon tuhari
meinhumhari

muhhbat

पत्थरों के इस शहर में भी मोहब्बत के दरख्त बाकी हैं...
अमृत बरसता है इस नखलिस्तानी टापू में निरंतर झर झर ....
जीवन की सारी रसभरी मुस्कान यहाँ बाकी है...
प्यार मरता नहीं तू 'अमृता' बन बरसा कर, सर्वदा निर्झर...
kal raat sone ko
takiey par rakhtei hi sar

soch jag gayi ik
mujhei jagane ko

kaun hoon
kahaan se aayi
kis duniya mein hai ghar
kyoon itni alag
itni akeli hoon
mein kaun

duniya meri mein
to hai bus
ek rooh jo basti sub mein
us rooh ki rachna hein hum sub
preet ke dhage meinpiroiey
alagalg moti hein hum
jhankei sub ki akhiyoonse WOH
bole meethei bol bhi WOH
kaayaa US ki chole sub ko
dil dharkaye dharkanWOH
ambar se barse kripa US ki
ban kar boondein oos ki jo
badal dhotei mehar ka pani
jub kub tub tub barsa dein
meharUS ki rim-jhim jo
hawain behti bhar bhar jholi pyaar ki lo
preet basi hei har kaya mein
kar dekho mehsoos to
ishq ishq karti khushboo phoolon ki
har su
dekho to
aajao ki bas rahein is duniya mein
ho rahein pee kar
amrit naam hum do
takiey par sar tikatei hi
ek ajeeb sa vichar kaundh gaya
mein kaun hoon
kaya meri bisaat kahaan mera ghar
kis duniya se hoon
mein jo itni alag itni akeli
aakhir kayoon


kayoon
mujhei naheen deekh parta
woh sub jo dekh patein hein sub
kyoon mein is andhei pan main rehti hoon
ya ki yoon keh loo
ki mein kisi doosre hi yug mein
kisi aur hi sher mein
us paar rehti hoon mein
jahaan
hai siraf
ek ishwar
aur ek us ki rachna
sub mein basti US ki rooh
beitha sub ke bheetar
jhankei sub ke aankhoon
bole mithei bol
cho le mehsoos kare kaya jo hai
us ki
aur dil bhi dharkan bhi woh
ik preet ki lari mein piroey dane hein hum sub

woh phere tasbhi
aur mehar humpar hoti jai
pyaar hi pyaar barasta gagan se
pyaar hi behta samandar mein
preet se ladi hein hawaaein yahhan ki
badal dhotei pani lagan ka
ishq he ishq phooloon ki khushboo mein
barstei megh kripa ban rim-jhim -rim -jhim
merei is shehar ka naam
allah ho ya ho bhagwaan
rub ho ya ki jesu masi
kaya tum bhi ho ushehar ke wasi
kaya tum rehtei ho yaheen

शनिवार, 23 मई 2009

patharoo ka sehar

patharoon ki is duniya mein=20

mohhabat ka ik chota sa sher hai=20

jahaan kewal dharkne raha karti hein=20

=A0dharkane se unke he yeh sahar jeeta hai=20

roohein madhur meethei pyaar ke geet sunati hein=20

umbar se barish ban ban barasti hai preet=20

=A0pankhuriyaan sehlati hein de kar apne sparsh
=A0
jharne yado ke nehla jatein hein aksar=20

sawan bhi bhigo deta hai palke kabhi=20

pwan ke thende jhoke cheir cheir jatei hein=20

kabhi kabhi badal bijuri aa kar daratei hein=20

par roohoon ko dharkanoo ko=20

jin mein hai preet basi kaun dara sakata hai=20

aja ki bus jaien is shehar mein mohhabt kei=20

aur ho jaiein amar=20

yooki kehtien pyaar marta naheen kabhi
=0A=0A=0A

naam

naam hi diya aap ne
aur bus aisi kaisi ho gayi mein
jo bhi tha bheetar bhahar ban amrit barsne to tarap utha
is choti si dharkan ne jo dekha dharkta dil ek
id dil ne jo dekhi dharkan
ik
dharkti hui
jhut jaa bethi uske kareeb
umeed lagaye ki kabhi shayad woh dil apna le ga is choti si sehmi se dharkan ko
basa lega apne bheetar
bana lega apni
le kar bhahoon mein
khush kar dega
jhula ke jhoolei mein aalingan ke
aur
phir dharka karoon gi mein us ke tan man mein ban ke us ke dil ki dharkan
par kub
intjaar

urdhan

khayaloon ki urdhaan
ka to na koi aore na chore hai
baandh tooti ndi ke samaan
kaheen bhi beh nikalta hai
koshish hai
ki bandh sakoon
is dhara ko
de doon is ko ek jharnei na roop
jo bha kare nirjhar nir jhar
sada kare
sub ko sirbhore
thori thandak
thori pyaas bhujhaey
kabhi kisi musafir ke man mein bas jai
bhil loat loat loat kar
prassann ho bheta jai nirjhar nirjhar
bari umangei laey
dil dharkai
barkha ke pani sa nehla nehla jai
bus kuch aisa hi hai mera man
aap ke naam
thama jo aapne haath
laga bachpan se hei saath

ek behti dhara hoon
jise thama ik mauj ne
aa dono mil beh chalein
us sagar ki aur
jiska na koi aur na chore

thama jo haath phir
saath na chorein gey
chaltei chaltei saath phir
saaath na choreingey

yeh wada hei tum se
jyoon jyoti sang jyote samaey
mil sagar se
ho sagar jaein

mein mein na rahoon
tu tu na rahei
mujh se mein
tujh se tu kho jai
mujh mein tu
tujh meinmeinkho jaein

aa mil aalingan mein
kuch aise done kho jaein
kush aise

aap ki amrita